लखनऊ – गठिया वृद्धों के साथ साथ युवाओं के बीच एक बढ़ती समस्या के रूप में उभर रहा है, जिसकी वजह से वृद्धों व युवाओं को घुटने के प्रतिस्थापन जैसी तकनीकों का सहारा लेना पड़ रहा है। जबकि इन तकनीकों के अलावा और भी कई ऐसे विकल्प मौजूद है जिनके द्वारा ज्वाइंट डैमेज व ज्वाइंट प्रतिस्थापन से बचा जा सकता है जिसमे कीहोल सर्जरी प्रमुख है। ऑर्थोपेडिक्स के क्षेत्र में लोगों को ज्वाइंट डैमेज से बचाने के लिए कई नयी तकनीकें – आर्थोस्कोपिक सर्जरी और एचटीओ जैसी रीएलाइनमेंट प्रक्रियाएं काफी मददगार साबित हो रही हैं।
आर्थ्रोस्कोपिक सर्जरी सिर्फ एक कीहोल की वजह से मामूली और प्रमुख सर्जरी में से एक बन गई है, जिसके माध्यम से सर्जन ज्वाइंट के अंदर की समस्या को देख कर उसका इलाज कर सकते हैं। इसे कीहोल सर्जरी, आर्थ्रोस्कोपिक या मिनिमल इनवेसिव सर्जरी भी कहते हैं। कीहोल सर्जरी जोड़ों के दर्द, लिगमेंट इंजरीज़, कार्टिलेज डैमेज, फ्रैक्चर, और जोड़ों के प्रत्यारोपण के इलाज के लिए भी इस्तेमाल की जा सकती है। यह सर्जरी तेज़ रिकवरी और ज्वाइंट प्रिजर्वेशन के लिए एक सरल समाधान है। जबकि हाई टिबियल ऑस्टियोटॉमी (एचटीओ) मरीज़ों की लोड बिअरिंग लाइन को सही करने का एक तरीका है जो ज्वाइंट डैमेज से बचाता है और नैचरल ज्वाइंट को बनाये रखता है।
रेडियस जॉइंट सर्जरी हॉस्पिटल के सीनियर कंसलटेंट डॉ संजय कुमार श्रीवास्तव ने कीहोल सर्जरी के लाभ के विषय में जानकारी देते हुए कहा कि ” कीहोल सर्जरी ‘पारम्परिक सर्जरी’ से काफी बेहतर है क्योंकि इससे मरीज़ों को कई लाभ मिलते हैं। इस सर्जरी में रक्त की कोई कमी नहीं होती है और संक्रमण का खतरा कम हो जाता है। इसमें दर्द निवारक दवाइयों की खास आवश्यकता नहीं रहती है। यह सर्जरी दर्द को कम कर घाव को तेज़ी से रिकवर करती है। चूंकि घाव बहुत छोटा होता है, तो शरीर के निशान भी जल्दी ठीक होते है। यह सर्जरी एक दिन में की जाती है, इसलिए यह कम समय में रिकवर हो जाती है जिसके फलस्वरूप मरीज़ अपने सामान्य जीवनशैली में जल्द से जल्द लौट सकते हैं। ”
डॉ संजय कुमार श्रीवास्तव ने आगे कहा कि ” कीहोल सर्जरी को आमतौर पर डे-केयर सर्जरी के रूप में किया जाता है। इस सर्जरी का उपयोग जोड़ों के दर्द और सूजन से निजात दिलाने के लिए किया जाता है। “मरीजों के पास अब लेस इनवेसिव कीहोल सर्जरी जैसा अच्छा विकल्प है जिससे गठिया रोगियों के प्राकृतिक जोड़ों को बचाया जा सकता है। ऑर्थोपेडिक्स के क्षेत्र में ऐसी कई आधुनिक तकनीकें उपलब्ध हैं, लेकिन अधिकांश लोग इन समाधानों से जागरूक नहीं हैं जो ज्वाइंट डैमेज व, ज्वाइंट रिप्लेसमेंट की संभावनाओं को कम करता है जिसकी वजह से रोगियों के प्राकृतिक जोड़ जीवन भर के लिए काम कर सकते हैं।
अब PayTM के जरिए भी द एम्पल न्यूज़ की मदद कर सकते हैं. मोबाइल नंबर 9140014727 पर पेटीएम करें.
द एम्पल न्यूज़ डॉट कॉम को छोटी-सी सहयोग राशि देकर इसके संचालन में मदद करें: Rs 200 > Rs 500 > Rs 1000 > Rs 2000 > Rs 5000 > Rs 10000.