लखनऊ। प्रदेश में एक से 19 वर्ष के बच्चों में पेट के कीड़ों की व्यापकता लगभग 76 प्रतिशत है। यह बच्चों में कृमि संक्रमण व्यक्तिगत साफ सफाई के व्यवहार में कमी तथा संक्रमित दूषित मिट्टी के सम्पर्क से संभावित होता है। कृमि संक्रमण से जहाँ बच्चों का एक ओर शारीरिक एवं बौद्धिक विकास बाधित होता है वहीं दूसरी ओर उनके पोषण एवं हीमोग्लोबिन स्तर पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है। इस कारण बच्चों में पेट के कीड़ो के कारण उनका समग्र विकास नहीं हो पाता है। इस लिए बच्चों को पेट के कीड़ों से मुक्त कराना सभी विभागों एवं नागरिकों की सामूहिक जिम्मेदारी से ही सम्भव है।
यह जानकारी अपर मिशन निदेशक निखिल चन्द्र शुक्ला ने आज राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन कार्यालय के एसपीएमयू सभागार में आयोजित प्रेसवार्ता में दी। उन्होंने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान के अनुसार यह कृमि जो पोषक तत्व बच्चांे के शरीर के लिए ज़रूरी होते हैं उन्हें खा जाते हैं, जिससे बच्चों में एनीमिया, कुपोषण, और शरीर का विकास रुक जाने जैसी समस्याएं जन्म लेती हैं। कृमियों के अत्यधिक संक्रमण के कारण बच्चे इतने बीमार या थके हुए रहने लगते हैं कि वे स्कूल में पढ़ाई पर ध्यान देने या स्कूल जाने में असमर्थ हो जाते हैं, जिससे लंबे समय में उनकी कार्य क्षमता और औसत आय में कमी आ सकती है। आंगनबाड़ी और स्कूल आधारित कृमि मुक्ति एक सुरक्षित, सरल व कम लागत वाला कार्यक्रम है जिससे आसानी से करोड़ों बच्चों को कृमि मुक्त किया जा रहा है।
पांचवें राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस का आयोजन 10 फरवरी 2018 को 28 चिन्हित जनपदों (आगरा, अलीगढ़, बागपत, बिजनौर, बदायूं, बुलन्दशहर, चंदौली, एटा, इटावा, फिरोजाबाद, गौतमबुद्ध नगर, गाजियाबाद, हापुड़, हाथरस, झाँसी, अमरोहा, काशीराम नगर, कौशाम्बी, ललितपुर, मैनपुरी, मथुरा, मेरठ, मुरादाबाद, मुज़फ्फरनगर, रामपुर, सहारनपुर, संभल एवं शामली) में 242.40 लाख बच्चों को कृमि मुक्त करने के लिए लक्षित किया जा रहा है। प्रदेश के अन्य शेष 47 जनपदों में फाईलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम चल रहा है।
उन्होंने बताया कि एल्बेंडाजोल (400 मिग्रा) गोली खाकर कृमि मुक्त होना कृमि संक्रमण का सबसे सरल सुरक्षित व प्रभावी तरीका है। इस दवाई से बहुत मामूली, हल्के और थोडे समय रहने वाले साईड इफैक्ट या कभी-कभी ड्रग रिएक्शन होता है और ये लक्षण आमतौर पर कृमि के मारे जाने से सम्बन्धित होते हैं। कृमि की अधिक संख्या होने की स्थिति में कुछ बच्चों में हल्का पेट दर्द, जी मिचलाना, उल्टी, दस्त और थकान जैसे आम लक्षण रिपोर्ट किए गए हंै। ये गंभीर लक्षण नही हैं तथा आमतौर पर इनके लिए किसी अस्पताल में इलाज की जरूरत नहीं होती है।
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