AI-powered अर्ली वार्निंग सिस्टम 16 घंटे पहले दे देगा शरीर की गिरावट का संकेत

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लखनऊ। किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के डाक्टरों ने डोजी चिकित्सा संस्था के साथ एआई-संचालित अर्ली वार्निंग सिस्टम (ईडब्ल्यूएस) पर अध्ययन करके एआई-संचालित अर्ली वार्निंग सिस्टम (ईडब्ल्यूएस) तैयार किया है। यह सिस्टम मरीज के स्वास्थ्य में गिरावट का संकेत 16 घंटे पहले ही दे सकता है। यह अध्ययन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जर्नलफ्रंटियर्स इन मेडिकल टेक्नोलॉजीमें प्रकाशित हुआ है, जोफ्रंटियर्ससमूह का हिस्सा है। अध्ययन टीम में केजीएमयू के डॉ. हिमांशु दांडू और डॉ. अंबुज यादव के साथ डोजी की क्लिनिकल रिसर्च टीम से गौरव परचानी, डॉ. कुमार चोकलिंगम और पूजा कदंबी, इंटेंसिविस्ट और आईएससीसीएम के पूर्व अध्यक्ष डॉ. राजेश मिश्रा शामिल हैं।

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इस शोध से पता चलता है कि डोजी का ईडब्ल्यूएस सिस्टम डॉक्टरों को मरीज की बिगड़ती स्थिति का पहले से अनुमान देकर समय रहते इलाज शुरू करने में मदद करता है, इससे कई जानें बचायी जा सकती हैं। यह एआई-संचालित अर्ली वार्निंग सिस्टम (ईडब्ल्यूएस) हार्ट रेट, श्वसन दर और ब्लड प्रेशर जैसे महत्वपूर्ण संकेतों पर लगातार नज़र रखता है।
केजीएमयू के मेडिसिन विभाग के डॉ. हिमांशु ने बताया कि यह सिस्टम मरीजों की स्थिति का समय रहते पता लगाने और उनकी लगातार निगरानी करने में सक्षम बनाता है। मरीज की सेहत बिगड़ने के संकेतों का जल्दी पता चलने से जीवन बचाने की संभावना काफी हद तक बढ़ जाती है।

उन्होंने बताया कि अध्ययन में 85,000 घंटों के दौरान 700 से अधिक मरीजों की निगरानी की गयी, जिससे यह साबित हुआ कि डोजी की कॉन्टैक्टलेस रिमोट मॉनिटरिंग तकनीक पारंपरिक मैन्युअल प्रक्रियाओं से अधिक प्रभावी है। 16 घंटे पहले चेतावनी देकर यह सिस्टम डॉक्टरों को समय रहते इलाज शुरू करने का अवसर देता है, जिससे मरीजों की स्थिति में सुधार होता है। इसके साथ ही यह तकनीक स्वास्थ्यकर्मियों का प्रति दिन औसतन 2.4 घंटे का समय बचाता है। इस शोध में अलर्ट की सटीकता, शुरुआती चेतावनी और स्वास्थ्यकर्मियों की गतिविधियों जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं का विश्लेषण किया गया, जो इस तकनीक के जीवन-रक्षक प्रभाव को और मजबूत बनाता है।

यह एआई-पावर्ड रिमोट पेशेंट मॉनिटरिंग और अर्ली वार्निंग सिस्टम लगातार मरीजों की स्थिति पर नज़र रखती है और आईसीयू के खर्च का एक छोटा हिस्सा खर्च करके विश्वस्तरीय देखभाल प्रदान करती है। इस सिस्टम में अस्पतालों की 95 प्रतिशत तक सुधार करने की क्षमता रखता है।

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