सात महीने बच्ची का जटिल इलाज कर ठीक किया दुर्लभ लकवा

0
175

लखनऊ। किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय स्थित बाल रोग विभाग के विशेषज्ञ डाक्टरों ने गिलियन बैरे सिड्रोंम से पीड़ित ( दुलर्भ लकवा) बच्ची को सात महीने तक चले इलाज में अथक प्रयास के बाद नयी जिंदगी दे दी है। लम्बे समय तक बीमारी से पीड़ित बच्ची अब पूरी तरह से स्वस्थ्य हो गयी है। इलाज कर रहे डाक्टरों ने फिजियोथेरेपी का परामर्श देकर डिस्चार्ज कर दिया है।

Advertisement

Kgmu स्थित बाल रोग विभाग की प्रो. माला कुमार, डा. शालिनी त्रिपाठी आैर डा. स्मृति की देखरेख में कानपुर देहात की रहने वाली आठ वर्षीय मदीहा का इलाज किया गया। बच्ची को जब इलाज कराने के लिए आयी थी, तब उसके हाथ पैर काम नही कर रहे थे। उसे सांस लेने में दिक्कत का सामना करना पड़ता था। जांच में पाया गया कि बच्ची एक प्रकार के दुर्लभ लकवा गिलियन बैरे सिंड्रोंम से पीड़ित थी। स्थानीय स्तर पर अभिभावकों ने इलाज कराया, लेकिन कोई फायदा न होने पर केजीएमयू लेकर आये। डा. शालिनी का कहना है कि इलाज के लिए आने पर बच्ची की जांच करायी गयी तो गिलियन बैरे सिंड्रोम की पुष्टि हुई।

इलाज के लिए उसे अंत: शिरा इम्युनोग्लोबुलिन ( आईवीआईजी)विशेष थेरेपी दी गयी, लेकिन उसकी हालत में कोई सुधार नहीं हो हुआ। उसे दोबारा यही थेरेपी दी गयी। पीआईसीयू में ही मरीज को सेप्टिक शॉक व वेंटिलेटर से जुड़ा निमोनिया हो गया। हालम में सुधार न होने पर न्यूरोलॉजी के विशेषज्ञों से परामर्श लिया गया। परामर्श के बाद सीएसएफ जांच कर प्लाज्मा फेरेसिस के तीन राउंड दिये गये। संक्रमण के कारण एंटीबायोटिक दवा भी बदली गयी। उन्होंने बताया कि लम्बे समय इंटुबेशन की आवश्यकता पर ट्रेक्योओस्टॉमी की गयी। इस दौरान दौरा भी पड़ गया। दौरे का इलाज कि या गया। लगातार बढ़ती बीमारी के कारण वह कमजोर होती जा रही थी। उसे ट¬ूब से भोजन देना मजबूरी बन गया। ब्लड प्रेशर बढ़ने के कारण उसे मुंह से दवा दी गयी।

इस बीच डाक्टर बच्ची के तेज धड़कन (टैचीकाड्रिया) का भी इलाज किया गया। इस बीच बच्ची के हाथों की कमजोरी में कुछ सुधार दिखने लगा। कुछ सुधार होने पर मुंह से भोजन देने के साथ ही वेंटिलेटर से हटाया गया। बच्ची पांच दिन तक ट्रेकि ओस्टॉमाइज्ड रही।फिर साइड की पट्टी बांध कर उसे बंद कर दिया गया। इसके साथ ही डाइटीशियन के अनुसार डाइट चार्ट दिया गया। निचले अंगो की जकड़न के लिए उसे फिजियोथेरेपी कराने का परामर्श दिया गया। सात महीने के इलाज में बच्ची में तेजी से सुधार हो रहा है। अब उसे महत्वपूर्ण रूप से दवाओं के साथ फिजियोथेरेपी की आवश्यकता है। उसे परामर्श के साथ डिस्चार्ज कर दिया गया है।

Previous articleकम ब्रेस्टफीडिंग कराने वाली महिलाओं में कैंसर का खतरा ज्यादा
Next articleविशेष दीपकों से जगमगाएगा श्रीराम लला मन्दिर

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here