लखनऊ। पचास वर्षीय मनोज कुमार ( बदला नाम ) ने बीमारी से निजात पाने की उम्मीद छोड़ दी थी। दिल्ली एम्स, इलाहाबाद संिहत लखनऊ के कई बड़े अस्पताल परिक्रमा कर आया था। स्क्रूटल फाइलेरिसिस अंडकोष की त्वचा की लसिकातंत्र में होने वाली बीमारी के कारण बिस्तर पर लेटे जिंदगी के दिन गिर रहा था। उसने ठीक होने की उम्मीद छोड़ दी थी, लेकिन किं ग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय स्थित सर्जरी विभाग के विशेषज्ञ वरिष्ठ डा. सुरेश कुमार व डा. पंकज सिंह की टीम ने सर्जरी करके 25 किलो पहुंच चुका स्क्रूटल फाइलेरिसिस से निजात दिला दी। डा. सुरेश कुमार ने बताया कि ज्यादातर लोग स्क्रूटल फाइलेरिसिस बीमारी के प्रति शुरुआती दौर में लापरवाही बरतते है। अगर शुरू में इलाज किया जाए तो इसको रोका जा सकता है।
बांदा निवासी 50 वर्षीय मरीज को लगभग दस वर्ष पहले हल्का बुखार, कंपकंपी के साथ अंडकोष में दर्द सूजन के साथ लालपन की शिकायत हुई। स्थानीय डाक्टर से इलाज कराने के बाद भी कोई लाभ न होने पर महोबा, इलाहाबाद और फिर नई दिल्ली एम्स में भी इलाज कराने पहुंचा। कहीं कोई इलाज से फायदा नही हुआ। धीरे-धीरे उसका स्क्रूटल फाइलेरिसिस के कारण अंडकोष बढ़कर करीब 25 किलो पहुंच गये। इसके बाद उसकी जिंदगी नरक हो गयी। चार वर्ष से वह घर में पड़ा रह रहा था। उसका सामाजिक जीवन समाप्त हो गया था। उसे लगता था कि उसकी जिंदगी खत्म हो रही है। गूगल पर किसी ने केजीएमयू में इस तरह सर्जरी होने का जानकारी दी, तो केजीएमयू की जरनल सर्जरी विभाग की ओपीडी में पहंुच गया। जांच के बाद उसी दिन उसको भर्ती कर लिया गया। अगले दिन विशेषज्ञ सर्जन डा. सुरेश कुमार और डा. पंकज सिंह की टीम ने मरीज की सर्जरी की आैर उसे दिक्कत से निजात दिला दिया। अब मरीज पूरी तरह से ठीक है और उसे सोमवार को डिस्चार्ज कर दिया गया है। डा. पंकज सिंह ने बताया कि सूजन अधिक होने की वजह से यह सर्जरी काफी जटिल थी। इसमें करीब पांच घंटे लगे है।
डा. सुरेश कुमार ने बताया कि मच्छर के काटने से फाइलेरिया होता है। जब फाइलेरिया ग्रस्त मरीज का मच्छर खून चूसता है कि माइक्रो फाइलेरिया उसके अंदर चला जाता है। फिर यही मच्छर जब दूसरे व्यक्ति को काटता है तो माइक्रो फाइलेरिया उसके शरीर में चला जाता है। इसके बाद यह मनुष्य के लसिका तंत्र में छुप कर बीमारी को बढाता रहता है। फिर खून में पहुंच जाता है। एक मादा 50 हजार शिशु कृमि को जन्म देती है। यह जिस स्थान पर रुकता है वहां टाक्सिन छोड़ते हैं। इससे नस में सूजन आ जाती है। उन्होंने बताया कि ज्यादातर लोग जागरूक नहीं होते है। हल्का बुखार के साथ ठंडी लगना तथा अंडकोष में लालिमा के साथ लगातार तनाव व दर्द होने पर डाक्टर से परामर्श ले आैर ंिहचक छोड़ कर अंडकोष की जांच कराये। शुरू दौर में सही इलाज से यह बीमारी नहीं बढ़ पाती है। बाद में सर्जरी की जरूरत पड़ती है। अंडकोष की तरह ही पिलपांव होने पर भी सर्जरी की जाती है।