26 सितंबर को विश्व गर्भनिरोध दिवस मनाया जाता है जिसके मूल में यह विचार है कि प्रत्येक महिला को अपनी फर्टिलिटी पर नियंत्रण मिले इसके लिए उसे उपयुक्त परिवेश उपलब्ध कराया ताकि ताकि हर गर्भाधान उसकी अपनी इच्छा से हो।
अनुमान है कि भारत की आबादी 2022 में चीन से भी ज्यादा हो जाएगी, इसलिए अब वक्त है कि हम अपने 60 वर्ष पुराने राष्ट्रीय परिवार नियोजन कार्यक्रम की समीक्षा करें। इस मौके पर हमें उन चुनौतियों पर गौर करना होगा जो दुनिया सबसे बड़े कार्यक्रमों में से एक इस परिवार नियोजन कार्यक्रम को भी नागरिकों तक पहुंचने से रोक रही हैं। परिवार नियोजन के विषय पर देश ने लक्ष्य तय किया है कि 2020 तक अतिरिक्त 4.8 करोड़ लोगों तक गर्भनिरोध सेवाओं को पहुंचाया जाएगा अगर हमें इसे हासिल करना है तो हमें हर हाल में महिला स्वास्थ्य के मुद्दे को चर्चाओं में आगे लाना होगा तथा सबकी अलग-अलग जरूरतों के मुताबिक उन्हें गर्भनिरोधकों के विकल्प मुहैया कराने होंगे।
परिवार नियोजन सेवाओं की मांग में अवरोध डालते हैं –
हालांकि जन स्वास्थ्य प्रणाली इस कार्यक्रम के जरिए विकल्प देने का दावा करती है किंतु विडम्बना यह है कि हमारे देश में गर्भनिरोधकों की मांग पूरी न होने का आंकड़ा दुनिया में सबसे ज्यादा है। भारत में परिवार नियोजन के प्रयासों का एक लंबा व पेचीदा इतिहास रहा है। जागरुकता का अभाव, अपर्याप्त सूचना तथा गर्भनिरोध के तरीकों के बारे में गलतफहमियां समुदायों के बीच इतनी व्यापक हैं कि गर्भनिरोध के उपलब्ध साधनों पर प्रतिक्रिया ठंडी रहती है। कई सामाजिक-सांस्कृतिक कारक ऐसे हैं जो बेहतर परिवार नियोजन सेवाओं की मांग में अवरोध डालते हैं। दम्पति नसबंदी नहीं कराना चाहते क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे उनके यौन जीवन पर दुष्प्रभाव होगा। काॅन्डोम संबंधी संकोच के चलते पुरुष इसे लेते नहीं और विकल्पों का ठीक से उपयोग नहीं हो पा रहा है।
विविध प्रकार के गर्भनिरोध के उपाय मुहैया कराएं –
उ.प्र. में हालात ज्यादा चिंताजनक हैं और वहां तत्काल समाधान किए जाने की जरूरत है। यहां गर्भनिरोध व दो बच्चों में अंतर रखने के मसले पर आवश्यकताओं की पूर्ति न होने का आंकड़ा 33.7 प्रतिशत है जो कि राष्ट्रीय औसत से करीबन 10 प्रतिशत ज्यादा है। इसके अलावा, भारत में जितने भी दम्पति गर्भनिरोध के उपाय करते हैं उनमें से एक तिहाई महिला नसबंदी के जरिए ऐसा करते हंै। इसलिए ऐसे कदम उठाने की जरूरत है जो दम्पतियों को उनकी भिन्न-भिन्न जरूरतों के अनुसार विविध प्रकार के गर्भनिरोध के उपाय मुहैया कराएं ताकि जन्म नियंत्रण के काॅन्सेप्ट को मजबूत किया जा सके।
दोनों के लिए स्वस्थ प्रजनन जीवन सुगम किया जा सकेगा –
महिलाओं को सशक्त बनाना होगा ताकि वे जानकारी के साथ अपने बारे में फैसला कर सकें तभी अवांछित गर्भाधान की घटनाएं कम होंगी, फलस्वरूप बेहतर जीवन व स्वस्थ परिवारों के अवसरों में इजाफा होगा। यद्यपि, यह भी सच है कि जन्म देने के औरतों के अधिकारों को सिर्फ तभी हासिल किया जा सकेगा जब पुरुषों को परिवार नियोजन की इस बहस का अभिन्न अंग बनाया जाएगा। अफसोस है कि उ.प्र. में हर 60 औरतों की नसबंदी के मुकाबले पुरुषों की नसबंदी का आंकड़ा मात्र 1 है। यह बड़ा फर्क इस जरूरत पर जोर देता है कि इस मुद्दे पर पुरुषों को शामिल करना ही होगा तभी पुरुषों व महिलाओं, दोनों के लिए स्वस्थ प्रजनन जीवन सुगम किया जा सकेगा। परिवार नियोजन संबंधी भ्रांतियों को दूर करने व जागरुकता उत्पन्न करने के लिए पुरुष शिक्षक समूहों (जैसे राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम) को साथ लेकर बड़े पैमाने पर काम करना होगा। इसके अलावा, काॅन्डोम व पुरुष नसबंदी संबंधी संकोच व नकारात्मक सोच को तभी समाप्त करना संभव होगा जब यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य के बारे में किशोरावस्था से ही शिक्षित किया जाएगा। जागरुकता, पहुंच और परामर्श परिवार नियोजन के हस्तक्षेपों को आगे बढ़ाने की कुंजियां हैं।
सिविल सोसाइटी, प्राइवेट सैक्टर, मीडिया व समुदाय इन प्रयासों को सक्रियता से सहयोग दें –
यह बहुत जरूरी है कि भारत में गर्भनिरोधकों के विकल्पों के विस्तार तथा जानकारी तक पहुंच सुधारने के लिए आंदोलन चलाया जाए। इस तथ्य के साक्ष्य हैं कि अगर गरीबों को इस काबिल बनाना है कि वे अपनी गरीबी से उबरने का रास्ता खुद बना सकें तो परिवार नियोजन उन्हें सशक्त करने के सबसे समझदारीपूर्ण निवेशों में से एक साबित होता है। यही वजह है कि सरकार को अब परिवार नियोजन तक सार्वभौमिक पहुंच प्रदान करते हुए परिवार नियोजन की पहलों व हस्तक्षेपों को आगे बढ़ाना होगा। सिविल सोसाइटी, प्राइवेट सैक्टर, मीडिया व समुदाय इन प्रयासों को सक्रियता से सहयोग दें।