लखनऊ। अगर आठ महीने के आर्यन के खाने में जाकर फंस गयी बैटरी को संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान के डाक्टरों ने निकाल तो दिया, लेकिन देर से आने के कारण बैटरी से निकलने वाले केमिकल ने आर्यन के खाने की नली को क्षतिग्रस्त कर दिया। फिलहाल डाक्टरों ने सिर्फ दूध पीने की इजाजत दे दी है, परन्तु अगर खाने की नली में सुधार नहीं हुआ तो सर्जरी कर खाने की नली बनानी पड़ेगी।
बताते चले कि सफीपुर उन्नाव के रहने वाले अमित के आठ महीने के बेटे आर्यन ने खिलौने वाले गोल बैटरी निगल गया। समय पर घर वालों ने ध्यान नहीं दिया। उसने दूध पीना बंद कर दिया। छोटा होने के कारण वह परेशानी बता नहीं सकता था । घर वालों ने सोचा कि कोई हल्की परेशानी होगी ठीक हो जाएगी, लेकिन जब राहत नहीं मिली तो नजदीकी डाक्टर को दिखाया तो बताया कि गले में कुछ फंसा है । घर वाले तमाम कोशिश किए कि फंसी चीज निकल जाए लेकिन निकली नहीं तो घर वाले पीजीआई के इमरजेंसी में आए, जहां पर पिडियाट्रिक गैस्ट्रो सर्जरी विभाग के डाक्टर ने देखने के बाद बच्चे को अपने वार्ड में शिफ्ट कर लिया।
विभाग के प्रो. मोनिक सेन शर्मा ने इंडोस्कोपी कर फंसे वस्तु को निकाला तो देखा कि वह गोल खिलौनी वाली बैटरी है जो लंबे समय गले में फंसे होने के कारण उसमें एसिड का रिसाव हुआ, जिसने खाने की नली को भी जला दिया है। फिलहाल बच्चे को घर भेज दिया गया है, केवल दूध पिलाने को कहा गया लेकिन आगे चल कर खाने की नली में सिकुडन की पूरी आशंका है जिसे बार दूर-दूर करना पडेगा । इससे भी रहात न मिली तो पूरी सर्जरी नई खाने की नली बनानी पडेगी। प्रो. मोनिक कहते है कि घर वालों की लापरवाही और अनजाने पन के शिकार केवल आर्यन की नहीं इस तरह के लगभग 15 बच्चे हमारे पास अंडर ट्रीटमेंट है। इसकी वजह से बच्चों का जीवन तबाह हो रहा है, साथ ही घर वाले परेशानी में पड़ रहे हैं।
डाक्टरों का कहना है कि गोल बैटरी में लीथियम होता है जो एल्कली होता है। धीरे-धीरे एसिड रुाावित हो कर खाने की नली की भतरी सतह को भी जला देता है, यदि दो-चार घंटे में निकल गयी होता तो खाने की नली नहीं जल पाती। इसे लिक्वी फैक्टिव निक्रोसिस कहते है, जो बाद में खाने की नली में सिकुडन पैदा करेगा।
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