Kgmu में बोनमेरो प्रत्यारोपण प्रोग्राम जल्द होगा शुरू

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लखनऊ। बोन मेरो प्रत्यारोपण प्रोग्राम को तेजी से शुरू करने के लिए किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय में प्रत्यारोपण यूनिट बना रहा है। इसमें अलावा उच्चस्तरीय लैब की स्थापना की जाएगी। यह जानकारी केजीएमयू की कुलपति प्रो. सोनिया नित्यानंद ने रविवार को अटल बिहारी बाजपेई साइंटिफिक कंवेंशन सेंटर में आयोजित प्रथम एनुवल हेमेटोलॉजी कॉन्क्लेव में सम्बोधित करते हुए कही।

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कुलपति ने कहा कि इसके साथ हेमेटोलॉजी विभाग को प्रदेश का हब बनाने के लिए जल्द काम शुरू हो रहा है। ब्लड, ब्लड बनाने वाले अंग, ब्लड की बीमारियों और उसके इलाज को लेकर किये जाने वाले अध्ययन से संबंधित चिकित्सा की एक अलग विभाग है। इसको बढ़ावा देेने के लिए यूनिट बनाने जा रही है। इसके साथ ही एसजीपीजीआई, केजीएमयू और लोहिया संस्थान मिलकर शोध करेंगे, जिससे विभिन्न बीमारियों के इलाज की नयी तकनीक की खोज की जा सकेगी। उन्होंने कहा है कि नयी लैब में ब्लड से संबंधित बीमारियों की उच्चस्तरीय डाइग्नोसिस की जा सकेगी। कुलपति ने कहा कि तीनों संस्थान मिलकर क्लीनिकल ट्रायल करें, जिससे बीमारियों का इलाज आसान हो सके।

कान्फ्रेंस के दौरान कुलपति प्रो.सोनिया नित्यानंद ने कहा कि इस तरह के कॉन्क्लेव से डॉक्टरों और मेडिक ोज को नवीन जानकारी देने में काफी कारगर होते हैं। बताते चले कि एसजीपीजीआई और लोहिया संस्थान में हेमेटोलॉजी विभाग की शुरूआत प्रो.सोनिया नित्यानंद ने ही की थी। कॉन्क्लेव के आयोजन सचिव डॉ एस पी वर्मा ने बताया कि दूसरे दिन प्रथम सत्र में राज्य के संस्थानों में हेमेटोलॉजी में पीजी कर रहे चिकित्सकों ने हिस्सा लिया। जिसमें बीएचयू की टीम ने प्रथम स्थान प्राप्त किया, लोहिया संस्थान की टीम ने द्वितीय स्थान प्राप्त किया। वहीं एम एल एन प्रयागराज की टीम ने तृतीय स्थान प्राप्त किया। विजेताओं को कुलपति प्रो सोनिया नित्यानंद ने पुरस्कार देकर सम्मानित किया।

इस अवसर पर पीजीआई चंडीगढ़ की डॉ रीना दस ने बताया ने बताया कि थैलेसीमिया के मरीजो में आयरन ओवरलोड होने की समस्या होती है। यह दिक्कत बार बार रक्त चढ़ाने से होती है। जिसकी पहचान कर इलाज किया जा सकता है।
मुम्बई के डॉ. अभय भावे ने बताया कि आयरन की कमी एक सामान्य समस्या है। इसके उपचार में आयरन की गोली का प्रयोग किया जाता है। उन्होंने कहा कि बिषम परिस्थितियों में नस के जरिये आयरन देना भी उचित होता है और यह सुरक्षित भी होता है। दिल्ली के डॉ दिनेश भूरानी ने बताया एक्यूट मयलोइड ल्यूकीमिया को पहचानना वृद्ध लोगो मे मुश्किल होता है।

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