लखनऊ। राजस्थान की भांति सामूहिक त्याग पत्र का उत्तर प्रदेश के डाक्टर भी दे सकते है। राजस्थान जैसे हालात प्रदेश में भी बनते जा रहे है। यह निर्णय प्रातींय चिकित्सा सेवा संघ की केन्द्रीय कार्यकारिणी की आपात बैठक में लिए गये। पीएमएस भवन महानगर में आयोजित बैठक में कार्यकारिणी ने आल राजस्थान इन सर्विसेज डाक्टर्स एसोसिएशन के तत्वावधान में स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति अदूरदर्शी तथा उपेक्षात्मक रवैये के चलते आैर डाक्टरों के उत्पीड़न की कार्रवाई के विरोध में अपना सामूंिहक इस्तीफा सौपे जाने का समर्थन देने का निर्णय लिया गया है।
संघ के अध्यक्ष डा. अशोक कुमार यादव ने कहा कि राजस्थान जैसे हालात प्रदेश में भी बनते जा रहे है। उन्होंने कहा कि चिकित्सा व्यवस्था को सृद्ृढ करने के नाम पर तथाकथित वैज्ञानिक जिनका चिकित्सा क्षेत्र से दूर – दूर तक का नाता एवं अनुभव भी नहीं है। यह लोग डाक्टरों को गिनी पिग व अस्पतालों को प्रयोगशाला मानकर प्रतिदिन नये प्रयोग करने का प्रयास करते रहते है, जबकि हकीकत यह है कि डाक्टरों की कमी से जूझ रहे प्रदेश के काम के बोझ से दबे कार्यरत डाक्टर अपनी क्षमता से कई गुना अधिक काम करने के बावजूद भी अपनी सेवा सम्बधी लाभों से वंचित एवं नियमित कामों के ना होने से कुठिंत एवं हताश हो रहे है। महासचिव अमित सिंह ने कहा कि संघ की स्वास्थ्य मंत्री , प्रमुख सचिव चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, महानिदेशक चिकित्सा स्वास्थ्य के साथ कई चरणों में बैठक हुई, लेकिन कोई असर नहीं होता दिख रहा है।
फिक्स ड¬ूटी के घंटे, पीजी अलाउंस, पोस्टमार्टम भत्ता संवर्ग में कार्यरत एमबीबीएस डाक्टरों को विशेषज्ञ बनाने के लिए विभिन्न योजनाओं पर अमल, विभागीय नियमित प्रोन्नति सहित अन्य मांगों पर सरकार व प्रशासनिक चुप्पी खेद जनक है।ऐसे में प्रबुद्ध वर्ग को सड़को पर उतरने के बाध्य करना शर्मनाक होगा। ऐसे में प्रदेश में सेवारत डाक्टर कोई भी निर्णय लेने को स्वतंत्र होंगे, जिसमें राजस्थान की भांति सामूहिक त्याग पत्र का विकल्प भी सम्मलित है।