आप कहीं बाहर जाने की योजना बना रही हों कि तभी एक करीबी रिश्तेदार फोन पर बताते हैं कि वह दो दिन आपके साथ सपरिवार बिताएंगे, आपके अरमानों पर पानी फिर जाता है। आप इन अनपेक्षित मेहमानों से बौखला उठती हैं। दो दिन और चार लोग, जिनमें दो शरारती बच्चे भी शामिल हैं और फिर सबकी पसंद अलग-अलग उफ्फ कैसे होगा सब? दरअसल, सभी चाहते हैं कि उनके अपने आएं और दो-चार दिन रहें, पर परेशानी बाद की उन स्थितियों से होती है जो दूसरे रिश्तेदारों से सुनने को मिलती है। आपने दिल खोलकर मेजबानी की।
नाजुक सामानों के टूटे टुकड़े भी समेटे, बच्चों ने जो मांगा था दिया। इतना सब करने के बाद भी आपको इधर-उधर से मेहमानों की शिकायतें सुनाई पड़ती हैं। इस स्थितियों से बचा जा सकता है। एक छोटा सा शब्द है ‘तैयारी’। यानी तैयार रहिए। फिर मेहमान चाहे दो दिन के लिए आएं या दो महीनों के लिए थोड़ी सी योजना से आप किसी भी अवांछित स्थिति से बच सकती हैं।
जब आप मेजबान बनें –
- मेहमानों के आने से पहले अपना सारा कांच का या टूट सकने वाले सामान को उठाकर सुरक्षित जगह रख दें।
- यदि बच्चे भी आए हों तो उन्हें उनके खेलने-कूदने की जगह बताने का काम आपको बेहद चतुराई से करना होगा, ताकि उनके माता-पिता को बुरा न लगे।
- आप बच्चों को खुद भी खेलने का सामान दे सकती हैं। अगर अक्सर आपके घर बच्चे आते हैं तो कुछ खिलौने खरीद कर भी रखे जा सकते हैं। परंतु अगर आपके मेहमानों में बच्चे कभी-कभार आते हैं, तो आप पड़ोसियों से कुछ समय के लिए खिलौने उधार भी ले सकती हैं।
- खाने के लिए पहले से ही एक सूची बना लें और सबकी राय जान लें। फिर उसके अनुसार ही खाना बनाएं।
- मेहमानों के आगमन पर अपनी हैसियत से बढ़कर किया जाने वाला अनावश्यक खर्च बाद में आपकी परेशानी बन सकता है। दिखावा छोड़कर व्यवहारिक बनिए और वही कीजिए जिसे आप सहजतापूर्वक कर सकती हैं।
जब आप मेहमान बनें –
- जिसके पास आप जा रहे हैं उससे आपके सम्बन्ध कैसे हैं। इस पक्ष पर विचार कर लीजिए। रुकने का कार्यक्रम रिश्ते के अनौपचारिकता पर निर्भर करता है। जिसके घर आप जा रहे हैं। अगर उनके घर में बच्चें हैं, तो उनके लिए कुछ खाने की वस्तु या छोटे-मोटे सामान जैसे-खिलौने या कोई भी उपहार ले जा सकती हैं।
- अपनी व अपनी बच्चों की जरूरत का सारा सामान साथ में लेकर जाएं। अपने मेजबान की वस्तुएं हड़पने की ताक में रहेंगे, तो वे अगली बार आपको बुलाने से कतराएंगे।
- एक अन्य जरूरी बात यह है कि 24 घंटे अपने मेजबान के सिर पर ही सवार मत रहिए। उन्हें भी बात करने को थोड़ा एकांत चाहिए। इसके लिए आप घूमने बाजार जा सकते हैं, पर किसी पड़ोसी के घर गप्पे मारने से बचें।
- बाहर रेस्तरां में खाने, घूमने-फिरने और खरीदारी में हुए खर्च को अपने मेजबान के सिर मत मढें। खुद भी खर्च करें। बच्चों की जिद में उनका साथ न दें।
- बच्चों के साथ में जा रहे हों, तो उनके खाने की पसंद वाली वस्तुएं साथ में भी ले जाई जा सकती हैं। बजाय इसके कि आप मेजबान की मेहनत से बनाई चीजों की नुक्ताचीनी करें कि मेरा बच्चा यह नहीं खाता, वह नहीं खाता।
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप मेहमान हैं या मेजबान। अच्छे से खुलकर मिलिए। अच्छा खाइए, अच्छा खिलाइए। खूब हंसिए और हंसाइए। साथ बैठक दिल खोलकर बाते करिए। खुशियां बांटिए। कुछ ऐसे कि विदाई के समय दोनों के ही दिलों में फिर से मिलने की अभिलाषा हो तभी तो है परिवार मिलन का सच्चा सुख।