देश और दुनिया की विशाल आबादी के बीच औषधि का कारोबार भी बढ़ता जा रहा है। औषधि उद्योग जिसे फार्मा इंडस्ट्री के नाम से भी जाना जाता है, का विस्तार उदारीकरण के बाद रिसर्च एंड डेवलपमेंट से लेकर मैन्युफैक्चरिग, क्लीनिकल ट्रायल, जैनेटिक ड्रग्स तक हो चुका है।
दवाओं के वितरण से लेकर मार्केटिग, पैकेजिग तथा मैनेजमेंट सभी फार्मास्युटिकल के अहम हिस्से हैं। वैश्विक स्तर पर इसमें भारत की भागीदारी अहम है। ज्यादातर कम्पनियों को यहां अपने उद्योग को बढ़ाने और फलने-फूलने का मौका मिलता है। एक अनुमान के मुताबिक इस क्षेत्र में आज तकरीबन पांच लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है।
आए दिन इस क्षेत्र की जिस तेजी से तरक्की हो रही है, उसमें फार्मा विशेषज्ञ और इससे जुड़े लोगों की मांग और बढ़ेगी। इन जरूरतों को ध्यान में रखते हुए फार्मास्युटिकल साइंसेज एंड रिसर्च में कुशल या दक्ष फार्मासिस्ट तैयार करने के लिए डी.फार्मा और बैचलर इन फार्मा जैसे कोर्स शुरू किए गए हैं। आज ये कोर्स सफलतापूर्वक चल रहे हैं। इनमें दाखिले के लिए हर साल सैंकड़ों छात्र कतार में खड़े होते हैं।
दाखिले की प्रक्रिया
दाखिला आमतौर पर कट ऑफ के आधार पर दिया जाता है –
इस क्षेत्र में आने के लिए 1०वीं से ही खुद को दिमागी तौर पर तैयार रखना पड़ता है क्योंकि इसमें 12वीं के अंकों के आधार पर उन्हीं छात्रों को दाखिला दिया जाता है जिन्होंने मेडिकल साइंस से जुड़े विषय की पढ़ाई की हो। छात्रों को न्यूनतम पचास फीसदी अंक के साथ बारहवीं में जीव विज्ञान, रसायन विज्ञान, जूलॉजी आदि विषय पढ़े होने चाहिए। दाखिला आमतौर पर कट ऑफ के आधार पर दिया जाता है। डी.फार्मा और बैचलर इन फार्मा की अलग-अलग दाखिला प्रक्रिया अपनाई जाती है।
क्या है सिलेबस
फार्मेसी से जुड़ा डिप्लोमा कोर्स दो साल का है। इसमें छात्रों को फार्मेसी से जुड़ी आधारभूत चीजें बताई जाती हैं। यहां स्नातक स्तर पर एक और डिग्री कोर्स है। यह बी.फार्मा चार साल का बैचलर डिग्री कोर्स है। इसमें चार साल के अंदर औषधि विज्ञान के विभिन्न पहलुओं के बारे में छात्रों को विस्तार से बताया जाता है।
पीजी लेवल पर एम.फार्मा में स्पेशलाइजेशन का दौर शुरू हो जाता है। इसमें छात्रों को फार्माकोलॉजी, फार्मास्यूटिक्स, हॉस्पिटल फार्मेसी, क्वालिटी सुधार प्रोग्राम, फार्मास्युटिकल मैनेेजमेंट और हर्बल ड्रग टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में विशेष रूप से दक्ष बनाया जाता है। पीएचडी में दवाओं और ड्रग्स को लेकर अनुसंधान का काम करना होता है।
कार्य क्षेत्र
सामान्य उत्पादों की मार्केटिग के लिए जहां सीधे डीलर या कस्टमर से संपर्क करना होता है, वहीं दवाओं की मार्केटिग से डॉक्टर भी अहम कड़ी होता है। दवाओं के बारे में डॉक्टरों को संतुष्ट करना जरूरी है तभी वे इसे मरीजों को दिए गए नुस्खों में लिखते हैं। कौन-सी दवाएं किस रोग के इलाज में प्रभावी होंगी, इसका ज्ञान औषधि विशेषज्ञ के पास ही होता है।
उसे रिसर्च करके आए दिन नई-नई दवाएं और ड्रग्स भी विकसित करनी पड़ती हैं इसलिए फार्मा मैनेजमेंट के क्षेत्र में काम करने के लिए दवाओं की बिक्री के साथ-साथ उसमें इस्तेमाल होने वाले पदार्थ व तकनीक के ज्ञान की भी अपेक्षा होती है। इस तरह के हुनर से लैस लोगों को दवा के निर्माण, मार्केटिग से लेकर वितरण तक अपनी भूमिका निभानी पड़ती है।
फार्मासिस्ट को अस्पतालों में, डिस्पेंसरी और मेडिकल स्टोर में इस काम के लिए विशेष रूप में रखा जाता है। इसके अलावा बाजार में जगह बनाने के लिए बतौर मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव और मार्केटिग ऑफीसर के रूप में आगे आना पड़ता है।
वेतनमान
बी.फार्मा की डिग्री धारकों को आमतौर पर बाजार में 25-3० हजार की नौकरी मिल जाती है। इसमें जो छात्र डिप्लोमा करते हैं उन्हें मेडिकल सेंटर या केमिस्ट शॉप पर सेल्स व मार्केटिग के काम में शुरुआती स्तर पर 2० से 25 हजार रुपए प्रतिमाह मिलते हैं। रिसर्च स्तर के छात्रों को 3० से 4० हजार प्रतिमाह पैकेज दिया जाता है।
संभावनाएं
फार्मेसी का कोर्स करने के बाद रिसर्च एंड डेवलेपमेंट में नौकरी पा सकते हैं। साथ ही फार्मास्युटिकल्स और मैन्युफैक्चरिग कम्पनी में सेल्स व मार्केटिग का काम कर सकते हैं। जनसंख्या के अनुपात में बीमारियों की बढ़ोतरी से फार्मा इंडस्ट्री का विस्तार हो रहा है। आज निजी अस्पताल, नîसग होम और क्लीनिक्स देश के कोने-कोने में हैं।
सरकारी स्टोर में फार्मासिस्ट के रूप में छात्रों को रखा जाता है। भारत में इस समय 23 हजार से भी अधिक रजिस्टर्ड फार्मास्युटिकल कम्पनियां हैं। इनमें से करीब 3०० आर्गेनाइज्ड सेक्टर में हैं। अनुमान के मुताबिक इस क्षेत्र में करीब पांच लाख लोगों को नौकरी मिली हुई है।
मार्केटिंग एग्जीक्यूटिव, प्रोडक्ट्स एग्जीक्यूटिव, बिजनेस अधिकारी व एग्जीक्यूटिव, प्रोडक्शन केमिस्ट, क्वालिटी कंट्रोल और इंश्योरेंस एग्जीक्यूटिव जैसे पद पर निजी कम्पनियों में काम करने का मौका मिलता है। एम फार्मा करने के बाद साइंटिस्ट और रिसर्च ऑफिसर जैसे पद व फार्मेसी कॉलेज में अध्यापन का काम भी कर सकते हैं। रिसर्च और दवा निर्माता कम्पनियों में प्रोडक्शन के काम में जुड़ सकते हैं।