Kgmu: डॉक्टरों के वर्चस्व के आगे प्रशासन नतमस्तक, करोड़ों की जांच अटकी

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लखनऊ। किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय में डॉक्टरों के वर्चस्व के आगे प्रशासन भी नतमस्तक है, पहले निजी प्रैक्टिस पर मांगे गए एफिडेविट पर ऑब्जेक्शन किया अब रिसर्च रिसर्च में हो रही गड़बड़ी को दबाना चाहते हैं।

 

 

 

 

केजीएमयू में डॉक्टरों के वर्चस्व के आगे प्रशासनिक अधिकारी भी फेल नजर आ रहे हैं। कुछ दिन पहले शासन ने सभी डॉक्टरों से निजी प्रैक्टिस ना करने का एफिडेविट मांगा था। केजीएमयू प्रशासन ने सभी डॉक्टरों से देने के लिए कहा था। डॉक्टरों ने इसमें कुछ पॉइंट पर विरोध किया , जिस पर केजीएमयू प्रशासन को विधिक सलाह लेनी पड़ी उसके बाद दोबारा एफिडेविट देने के लिए कहा गया है। यही हाल रिसर्च में जारी की गई, रकम को लेकर भी गड़बड़ी हुई है।

 

 

 

 

 

रिसर्च की रकम में फर्जीवाड़े की जांच के लिए केजीएमयू के डॉक्टर तैयार नहीं हो रहे हैं। रकम में गड़बड़ी की शिकायत के बाद केजीएमयू प्रशासन अब तक तीन बार जांच कमेटी गठित कर चुका है। इसके बाद कमेटी के सदस्यों ने जांच में असमर्थता बता दिया है।

 

 

 

 

बताते चलें कि केजीएमयू बाल रोग विभाग की डॉक्टर ने वर्ष 2014-15 में निमोनिया पर शोध के लिए प्रोजेक्ट हासिल किया।
मिलिंडा बिल गेट्स फाउंडेशन ने रिसर्च के लिए करीब पांच करोड़ रुपये का बजट दिया। अगर नियमो को देखे तो धनराशि केजीएमयू के रिसर्च खाते में आना चाहिए, परंतु गड़बड़ी कर रिसर्च की रकम डॉक्टर के दूसरे बैंक एकाउंट में आ गई। आरोप हैं कि नियमानुसार बजट खर्च नहीं हुआ। आरोप है कि धनराशि में फर्जीवाड़ा भी हुआ।
केशवनगर निवासी श्रीकांत सिंह ने मामले की शिकायत की। केजीएमयू प्रशासन ने तीन मार्च को प्रतिकुलपति डॉ. विनीत शर्मा की अध्यक्षता में मामले की जांच के लिए चार सदस्यीय कमेटी गठित की। कमेंटी के सदस्यों ने जांच करने में असथर्मता जाहिर की। नतीजतन 24 मार्च को कुलसचिव रेखा एस चौहान ने दूसरी बार कमेटी गठित की।

 

 

 

 

 

 

कमेटी के दो सदस्यों ने जांच करने में असमर्थता जाहिर की। ऐसे में जांच शुरू नहीं हो पाई। 18 मार्च को तीसरी बार फैक्ट फाइंडिंग कमेटी गठित की गई। इसमें एक सदस्य ने लंबी छुट्टी पर जाने की बात कहकर जांच से पीछा छुड़ा लिया है। केजीएमयू में करीब 500 डॉक्टर हैं। गंभीर आरोपों की जांच के लिए प्रशासन को सदस्य नहीं मिल रहे हैं। इससे प्रशासन की नाकामी मानी जा रही है। समय पर जांच भी नहीं हो पा रही है।

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