लखनऊ। शरीर में शुगर लेवल बढ़ने पर बार-बार प्यास लगती है, पेशाब ज्यादा होती है, आंखों की रोशनी में तेजी से गिरावट होती है, घाव लगने पर जल्दी ठीक नहीं होता है । इसी तरह हाथ पैर में झनझनाहट एवं खुजली महसूस होना, चक्कर आना चिड़ापन बढ़ जाना जैसे लक्षण सामने आते हैं तो सावधान हो जाएं। यह मधुमेह के लक्षण है। ऐसे लक्षण होने पर तत्काल चिकित्सक से सलाह लें
मधुमेह की चपेट में आने वाले लोगों को निराश होने के बजाय नियमित तौर पर दवाई लेनी चाहिए और खानपान दुरुस्त रखना चाहिए। मधुमेह के मरीजों के लिए कोरोनावायरस का खतरा ज्यादा रहा लेकिन तमाम ऐसे मरीज हैं जो मधुमेह की चपेट में होने के बाद भी कोरोनावायरस को मात देने में कामयाब रहे हैं। ऐसे में चिकित्सा विशेषज्ञों की सलाह है कि मधुमेह के मरीज खानपान दुरुस्त रखें और शारीरिक एक्सरसाइज पर नियमित तौर पर ध्यान देकर मधुमेह को काबू कर सकते हैं।ब्रिटेन में हुए शोध में दावा किया गया कि कोरोना वायरस से जान गंवाने वाले लोगों में से 33 फीसदी लोग पहले से मधुमेह के टाइप 2 के मरीज थे। यहां भी मधुमेह वाले मरीजों की मृत्यु दर दोगुनी रही लेकिन तमाम ऐसे मरीज रहे जो मधुमेह की चपेट में आने के बाद भी कोरोनावायरस को मात देने में कामयाब रहे। शोध के अनुसार, साल 2017 में दुनिया के कुल डायबिटीज रोगियों का 49 प्रतिशत हिस्सा भारत में था और 2025 में जब यह आंकड़ा 13.5 करोड़ पर पहुंचेगा ।
मधुमेह में भी जी सकते हैं सामान्य जिंदगी
लोहिया संस्थान के बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर केके यादव का कहना है कि बच्चों में टाइप वन डायबिटीज होती है। इसमें शरीर में इन्सुलिन बनाने कि प्रक्रिया बाधित या कम हो जाती है। इन्सुलिन से शरीर को ऊर्जा मिलती है और इस प्रक्रिया के प्रभावित होने से शरीर के प्रमुख अंगों का संचालन बाधित होने लगता है। इसमें नियमित तौर पर इंसुलिन थेरेपी देनी पड़ती है। शुगर नियंत्रित होने के बाद कई बार लोग इंसुलिन बंद कर देते हैं इससे खतरा बढ़ जाता है। इसलिए टाइप वन डायबिटीज में कभी भी इंसुलिन अपनी मर्जी से बंद नहीं करना चाहिए। चिकित्सक से मिलकर इसकी डोज कम या अधिक कराई जा सकती है। जिन बच्चों को इंसुलिन दी जाती है वह बड़े होने के बाद भी सामान्य लोगों की तरह जिंदगी जी सकते हैं। बस उन्हें अंशुल लेने का ध्यान रखना पड़ता है। यह समस्या ज्यादातर जेनेटिक मामलों की वजह से देखी गई है।
गर्भवती महिलाओं को सजग रहने की जरूरत
एसजीपीजीआई की महिला रोग विशेषज्ञ डॉक्टर संगीता ने बताया कि गर्भावस्था के दौरान महिलाओं में मधुमेह बढ़ने का खतरा रहता है। इस वजह से उन्हें खानपान पर विशेष ध्यान रखने की जरूरत होती है। मधुमेह का खतरा कम करने के लिए खाने में
कार्बोहाइड्रेट जिसमें साबुत अनाज और अपरिष्कृत अनाज एवं कम वसा वाले प्रोटीन का प्रयोग करें। चिकित्सक की सलाह से हल्के व्यायाम भी करने चाहिए। जिन लोगों में पहले से मधुमेह है वह गर्भ धारण करने से पहले उसे नियंत्रित करने का प्रयास करें। जब मधुमेह नियंत्रित हो उसके बाद गर्भधारण करना ठीक रहता है। गर्भावस्था के दौरान शुगर लेवल बढ़ा हुआ है तो लगातार चिकित्सक के संपर्क में रहें।
नियमित करें शारीरिक श्रम, शुगर रहेगी कम
लोहिया संस्थान के मेडिसिन विभागाध्यक्ष डॉ विक्रम सिंह का कहना है कि पैंक्रियाज में इंसुलिन के कम पहुंचने से खून में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ जाती है। इंसुलिन एक तरह का हार्मोन है जो पाचक ग्रंथि द्वारा बनता है। मधुमेह हो जाने से शरीर को भोजन से एनर्जी बनाने में समस्या होती है।जब ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है तो उससे शरीर के विभिन्न अंगों किडनी, आंख, मस्तिष्क आदि पर प्रभाव पड़ने लगता है। कोशिशएं क्षतिग्रस्त होती हैं जिससे खून की नलिकाएं और नसें दोनों प्रभावित होती हैं। इससे धमनी में रुकावट आ सकती है या हार्ट अटैक हो सकता है। स्ट्रोक का खतरा भी मधुमेह रोगी को बढ़ जाता है। शुगर को नियंत्रित रखने के लिए प्रतिदिन एक्सरसाइज जरूरी है। जिन लोगों के दादा दादी, माता पिता, नाना नानी अथवा अन्य नजदीकी रिश्तेदार शुगर की चपेट में रहे हो उन्हें जांच कराते रहना चाहिए। इसी तरह 40 साल की उम्र के बाद साल भर में कम से कम एक बार शुगर की जांच जरूर करानी चाहिए। सुबह टहलना, साइकिल चलाना, दौड़ना आदि के जरिए हम शुगर को नियंत्रित कर सकते हैं।