लखनऊ। बदलते परिवेश में वायरस में परिवर्तन तथा खानपान में गड़बड़ी से बीमारियां बढ़ रही हैं। शोध बताते है कि एक समान कारण से मरीजों को एक समान बीमारी भी हो जाए यह आवश्यक नही है, क्योंकि बीमारी जीन में गड़बड़ी के कारण बढ रही है। इसमें जीनोमिक मार्कर के आधार जांच पर होती हैं। इनकी रोकथाम और बेहतर इलाज के लिए नये पाठ¬क्रम में शामिल करना आवश्यक होता जा रहा है। मेडिकल कॉउसिल ऑफ इंडिया द्वारा जीनोमिक मेडिसिन एंड मॉलीकुलर मेडिसिन को एमबीबीएस के पाठयक्रम में शामिल करना चाहिए । यह जानकारी सोमवार को होटल क्लार्क में केजीएमयू के मॉलीकुलर बॉयलाजी यूनिट व जीनोम फाउंडेशन यूके के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित इंडो-यूके ट्रेनिंग वर्कशाप में यूके के डॉ.धावेन्द्र कुमार ने दी। वर्कशाप का केजीएमयू के कुलपति प्रो. एमएलबी भट्ट ने उद््घाटन किया। एरा मेडिकल कालेज के डा. अब्बास अली मेंहदी आदि विशेषज्ञ मौजूद थे।
डॉ.धावेन्द्र कुमार ने बताया कि कुछ लोगों में पाया गया हैएचआईवी संक्रमण हो जाता है, मगर बीमारी नही होती है। कई को कोलेस्ट्रॉल बढ़ा होता है मगर कार्डियक दिक्कत नही होती है। यह सब व्यक्ति बीमारी व्यक्ति विशेष के जीन पर निर्भर करती है। उन्होने कहा कि जीन आधारित बीमारियों का इलाज न केवल आसान होने के साथ ही बीमारी को ठीक करने वाला पूरा इलाज होता है। उन्होंने फेबरी डीजीज का विश्लेषण करते हुए बताया कि लाइसोसोन्स नामक एंजाइम व्यक्ति के सेल को खराब करने वाले कचरे को साफ करते हैं, वर्तमान में एन्जाइम रीप्लेसमेंट का इलाज किया जाता है, अच्छे जीन को सेल में प्रत्योरोपित कर देते हैं, जिससे अच्छे एंजाइम बनना शुरू हो जाते हैं। इसमें वायरस को सेल में प्रत्यारोपित करते हैं, वह पुराने जीन की जगह नये जीन मोडीफाई करते हैं। इसके अलावा उन्होंने बताया कि जीन एडिटिंग पर शोध जारी है, शोध में शराब जीन को निकाल कर , नये जीन प्रत्यारोपित करने का प्रयास करने पर शोध किया जा रहा है।
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