दवाओं की ऑनलाइन बिक्री, ई-फार्मेसी के खिलाफ अखिल भारतीय केमिस्ट बंद – जे.एस. शिंदे

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लखनऊ – देश में दवा विक्रेताओं एवं वितरकों के सबसे बड़े संगठन ऑल इंडिया ऑर्गनाइजेशन ऑफ केमिस्ट्स एंड ड्रगस्टि (एआइओसीडी) ने अपना रुख स्पष्ट करते हुए ‘दवाओं की ऑनलाइन बिक्री‘ के विरोध का ऐलान किया है। केंद्र सरकार द्वारा भारत में इंटरनेट के जरिए दवाओं की बिक्री करने या किसी भी रूप में ई-फार्मेसी चलाने की अनुमति देने के किसी भी कदम का प्रतिवाद करने के लिए 28 सितम्बर 2018 को एकदिवसीय अखिल भारतीय केमिस्ट बंद का ऐलान किया गया है। एआइओसीडी द्वारा कई गंभीर चिंताओं को सामने लाया गया है। इसका कहना है कि यदि दवाओं की ऑनलाइन बिक्री की अनुमति दी जाती है तो इससे सिर्फ इसके सदस्यों के कॉमर्शियल बिजनेस का नुकसान ही नहीं होगा बल्कि यह व्यापक पैमाने पर जनता के स्वास्थ्य के लिए भी खतरनाक होगा। सबसे महत्वपूर्ण हमारे देश की तकनीक-जानकार युवा पीढ़ी को अपूरणीय नुकसान पहुंचेगा।

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ऑल इंडिया ऑर्गनाइजेशन ऑफ केमिस्ट्स एंड ड्रगस्टि (एआइओसीडी) के प्रेसिडेंट श्री जे.एस. शिंदे ने कहा कि, ‘‘एआइओसीडी ने केंद्र सरकार, संबंधित मंत्रालयों और विभागों, राज्य खाद्य एवं दवा प्रशासन से कई ज्ञापनों के माध्यम से बार-बार अनुरोध किया है। इसने तथाकथित ई-फार्मेसीज, पोर्टल्स अथवा इंटरनेट द्वारा की जा रही दवाओं की अवैध ऑनलाइन बिक्री के अनेक मामलों/उदाहरणों का हवाला दिया है। एआइओसीडी ने इस मुद्दे की गंभीरता को लेकर जागरुकता फैलाने के लिए और नियमानुसार 8 घंटे काम करने और दो बार एकदिवसीय अखिल भारतीय केमिस्ट बंद भी किया।

इन सभी उपायों के बावजूद, देखा जा रहा है कि ऑनलाइन कंपनियां ड्रग ऐक्ट के प्रावधानों का खूब उल्लंघन कर रही है और प्राधिकारियों द्वारा इनके विरुद्ध कोई स्पष्ट कार्रवाई नहीं की गई है। इसके कुछ उदाहरण नीचे दिये गये हैं:

  1. ऑनलाइन कंपनियां ऐक्ट के तहत बिना किसी जवाबदेही के परिचालन कर रही हैं और प्रेस्क्रिप्शन की सत्यता को प्रमाणित किये बगैर ऑर्डर्स पास कर रही हैं
  2. एमटीपी किट्स, सिल्डेनािफल, टाडालाफिल जैसी दवायें, कोडीन जैसी लत डालने वाली दवायें आरएमपी के प्रेस्क्रिप्शन के बगैर बेची जा रही हैं
  3. अनुसूचित दवाएँं जिन्हें गायनेकोलॉजिस्ट, साइकैट्रिस्ट आदि जैसे विशेषज्ञ डॉक्टरों के प्रेस्क्रिप्शन पर ही सप्लाई करना होता है,या तो सीधे या फिर अयोग्य प्रैक्टीशनर्स के जरिये सप्लाई किया जा रहा है
  4. दवाओं को पुराने या छेड़छाड़ किये गये प्रेस्क्रिप्शन पर बेचा जा रहा है
  5. हर प्रेस्क्रिप्शन पर कमीशन प्राप्त करने के लिए मरीजों की जांच किये बगैर ही फर्जी ई-प्रेस्क्रिप्शन जेनरेट किया जा रहा है
  6. ऑनलाइन कंपनियाँ खुलेआम प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में विज्ञापन दे रही हैं जोकि ड्रग ऐक्ट की धारा 18 (सी) के प्रावधानों का उल्लंघन है जिसमें एक वैध लाइसेंस के बगैर कोई भी दवा बेचना या उसका वितरण या स्टॉक करना या उसे प्रदर्शित करना अथवा बिक्री के लिए पेशकश करना प्रतिबंधित किया गया है।

इससे अखिल भारतीय स्तर पर दवा विक्रेताओं के बीच काफी बेचैनी है और हम सरकार और राज्यस्तरीय प्राधिकारणों की निष्क्रियता के खिलाफ विरोध करने के लिए मजबूर हैं। साथ ही, हम आम जनता को होने वाली असुविधा के लिए खेद व्यक्त करते हैं। जे.एस. शिंदे ने कहा कि, हम अपनी चिंताओं को एक बार फिर दोहराते हैं जिसे पहले ही केंद्र सरकार और सभी संबंधित प्राधिकारियों को भेज दिया गया है: हमारी वैध चिंताओं के सबंध में केंद्र सरकार से अभी तक कोई उचित जवाब नहीं मिला है। आखिरकार एआइओसीडी को ध्यान आकर्षित करने के लिए दो बार ‘‘देशव्यापी बंद‘‘ करना पड़ा है।

हमारे लोकतांत्रिक रास्ता अख्तियार करने के बावजूद केंद्र सरकार द्वारा चिंताओं पर और खासकर जनसाधारण एवं देश के युवा वर्ग पर इसके संभावित विपरीत प्रभाव पर विचार किए बगैर अपनी बात पर अड़ी है। गौरतलब है कि भारी धनबल के साथ एक लॉबी ‘‘दवाओं की ऑनलाइन बिक्री‘‘ को नियमित करने का दबाव बना रही है, जिससे हमें डर है कि यह निकट भविष्य में अल्पाधिकार की स्थिति पैदा करेगी। हम पारदर्शी उदार नीतियों की उम्मीद करते हैं न कि कुछ बड़े खिलाडिय़ों के लिए ‘‘घोर पूंजीवाद‘ की।

उपर्युक्त तथ्यों की पुष्टि इस बात से होती है कि दवाओं की कीमतें डीपीसीओ के साथ केंद्र सरकार द्वारा नियमित एवं नियंत्रित होती हैं। खुदरा विक्रेताओं के लिए कुल व्यापार मर्जिन 16 प्रतिशत और थोक विक्रेताओं के लिए 10 प्रतिशत तक सीमित है। ऐसा पाया गया है कि ऑनलाइन कंपनियां 50 से 70 प्रतिशत तक का भारी डिस्काउंट ऑफर करती है और इसका विज्ञापन प्रेस एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में धड़ल्ले से किया जा रहा है। इन ऑनलाइन कंपनियों के बीच गलाकाट अनैतिक प्रतिस्पर्धा हमारे ब्रिक एंड मोर्टार दवा विक्रेताओं की दुकानों को बंद करवा देगी। भारी-भरकम निवेश करने वाला एक छोटा दुकानदार इन बड़ी कंपनियों का सामना नहीं कर सकता।

दुनिया में कहीं भी, यहां तक कि उन्नत व बेहद विनियमित देशों में, ‘‘दवाओं की ऑनलाइन बिक्री‘‘ को खुली छूट नहीं दी गई है। जिन देशों ने ऑनलाइन बिक्री को कुछ स्कोप दिया है, वे दवाओं की अनैतिक बिक्री करने वाले अनाधिकृत वेब-पोर्टल्स द्वारा किये जा रहे भारी दुरूप्योग के कारण कुछ और पाबंदियां लगाने पर फिर से विचार कर रहे हैं। भारत में अपर्याप्त विनियामक आधारभूत संरचना के साथ ऑनलाइन बिक्री की अनुमति देना काफी अपरिपक्व कदम होगा। हमारे संगठन का प्रत्येक सदस्य अपने भविष्य, अस्तित्व को लेकर बेहद चिंता में है।

यह 8 लाख से अधिक सदस्यों और 1 करोड़ निर्भर परिवारों, स्टॉफ, सहायक सेवा प्रदाताओं का सवाल है। इन सभी में ‘‘दवाओं की ऑनलाइन बिक्री‘‘ का पक्ष लेने वाली केंद्र सरकार की नीति के खिलाफ काफी रोष है। जे. एस. शिंदे ने कहा कि यदि सरकार, हमारे अनुरोध को समझने में नाकाम रहती है और इस पर सकारात्मक रुख नहीं अपनाती है, तो एआइओसीडी के पास दवाओं की ऑनलाइन बिक्री के विरुद्ध देश्व्यापी अनिश्तिकालीन विरोध पर जाने के सिवाय कोई दूसरा विकल्प नहीं होगा।

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