ठंड में गत्ते जला कर पेड़ नीचे गुजारते है लोहिया संस्थान में मरीज व तीमारदार रात

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लखनऊ। रात में ठंडी हवा के बीच जब पारा चार डिग्री सेल्सियस पर पहंुच चुका होता है। तब गोमती नगर स्थित डा. राम मनोहर लोहिया संस्थान में फुटपाथ पर पेड़ के नीचे तीमारदार गत्ते जलाकर ठंड दूर कर रहे होते है। यहां पर तीमारदार ही नहीं बल्कि गैर जनपदों के मरीज भी ठंड से ठिठुरते हुए रात काट देते है कि क ब ओपीडी खुले आैर वह अंदर जाकर बैठे। कहने को गैराज टाइप के टीन शेड को रैन बसेरा कहा जाता है लेकिन यहां पर सात आठ लोग ही रूक सकते है। जो कि सीवर लाइन की बदबू, मच्छर आैर गंदगी के बीच रहने को मजबूर है।

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यह नजारा उच्चस्तरीय चिकित्सा देने वाले लोहिया संस्थान में आज कल देखने को मिल रहा है। इतने में बड़े संस्थान में कोई ऐसा रैन बसेरा नहीं है जहां पर 15 – 20 मरीज या तीमारदार ठंड में रात गुजार सके। कहने को आैपचारिकता निभाने के लिए बाहर गेट के पास गैराज टाइप को रैन बसेरा बना दिया गया है। जहां पर टूटे पलंग पड़े हुए है। जिन्हें तीमारदारों ने रस्सियों से बांध रखा है। ताकि वह नीचे नहीं गिर सके। यहां पर लेटे बस्ती के मरीज ने बताया कि वह आपरेशन के बाद हफ्ते पट्टी कराने के लिए कहा गया है। इसलिए वह रूका हुआ है। इसी प्रकार सीतापुर से आये तीमारदार सावित्री का कहना है कि साहेब कहने को रैन बसेरा है।

बाहर कूड़ा ढेर है जो कि हफ्ते में एक बार ही हटाया जाता है। अंदर सीवर लाइन की जाली से बदबू आैर कीड़े निकलते रहे है, जिसके कारण लेटना बैठना मुश्किल होता है। मच्छरों के कारण मच्छरदानी भी लानी पड़ी है। वहीं ओपीडी के सामने पेड़ के नीचे लेटे मरीज आैर तीमारदारों के जमीन पर गत्ते बिछाते है आैर साथ में लाये कम्बल आैर रजाई को अोढ़ते है। गत्तों को ही जला कर यह लोग रात में ठंड दूर करने की कोशिश करते है। संस्थान में कही भी अलाव जलाने की व्यवस्था नहीं है। यहां पर तीमारदार रमेश का कहना है कि गैर जनपद से सुबह नही आ सकते है। ओपीडी में देर हो जाती है। इसलिए एक दिन पहले ही आना पड़ता है।

इसके अलावा कैंसर के काफी मरीज भी पेड़ के नीचे लेटे रहते है, जिनकी या तो कीमो चलती है या भर्ती के इंतजार में कड़राती रात में दर्द बीच गुजरती है। तीमारदारों का कहना है कि लोहिया अस्पताल में दूसरी तरफ रैन बसेरा है जहां पर रूका जा सकता है लेकिन वहां अस्पताल के तीमारदारों से फ ुल हो जाता है। तीमारदारों का कहना है कि अगर संस्थान चाहे तो अस्थायी रैन बसेरा बन सकता है। लोहिया संस्थान में रैनबसेरा के निर्माण प्रस्तावित है, जिसके बनने में अभी फिलहाल काफी वक्त है।

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