संघर्ष कर समाज मे बनाया मुकाम

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लखनऊ – अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस आज मनाया जा रहा है। मौजूदा समय में जो स्थित दिखाई पड़ती है,अतीत में ऐसी नहीं थी। जिस प्रकार की आजादी आज हम महिलाओं को प्राप्त हुए देखते हैं, वे पहले नहीं थीं। न वे पढ़ पाती हैं न नौकरी कर पाती थीं । इतना ही नहीं आज भी महानगरों को छोड़ दिया जाये तो बाकी अन्य शहरों व गांवों में महिलाओं को वह अधिकार नहीं मिल पा रहा है,जिसका उन्हें अधिकारी है। महिला दिवस महिलाओं के प्रति सम्मान, प्रशंसा और प्यार प्रकट करते हुए इस दिन को महिलाओं के आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक उपलब्धियों के उत्सव के तौर पर मनाया जाता है। आज भी समाजिक कुरूतियोंं से संघर्ष करना पड़ता है,उसके बाद ही वह आगे बढ़ती हैं। आज महिला दिवस के अवसर पर राजधानी में अपना मुकाम हासिल करने वाली महिलाओं की कहानी, जिन्होंने बिना किसी की सहायता के संघर्षों के बाद मंजिल पाई है और अपने को स्थापित किया।

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असामाजिक तत्वों से लड़कर भी पाया अपना मुकाम

समाज सेवा में निरन्तर व्यस्त रहने के बाद बावजूद परिवारिक उत्तरदायित्वों का निर्वाह कैसे किया जाता है। इसका जीता जागता उदाहरण डा.ममता गौड़ हैं। एक कलर्क पिता की सबसे बड़ी संतान, जिसके ऊपर छोटे भाई बहनों की जिम्मेदारी थी, उन्होंने एक चिकित्सक बनकर समाज की सेवा करने का सपना देखा और उत्तर प्रदेश के सर्वश्रेष्ठï चिकित्सा शिक्षा केंद्र किंगजार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय से १९९९ में प्रवेश लिया । उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। वर्ष २००९ में कानपुर मेडिकल कालेज से रेडियोलॉजी के क्षेत्र में एमडी करके सामाजिक सेवा के लिए कदम बढ़ाया।

चार वर्षो तक लखनऊ के विभिन्न संस्थानों में काम करने के बाद २०१३ में बिना किसी की सहायता लिए अपना डायग्नोस्टिक सेंंटर शुरू किया। पांच वर्षो के अथक परिश्रम के बाद वरदान डायग्नोस्टिक सेंटर न सिर्फ अपने वर्तमान स्वरूम में आया बल्कि शहर के अग्रणी चिकित्सा सेवा केन्द्रों में गिना जाने लगा। पांच वर्षो का उनका यह सफर मुश्किलों भरा रहा। पति सरकारी सेवा मे होने के कारण सक्रिय रूप से सहयोग नहीं कर सकते थे।

साथ ही असामाजिक तत्वों ने तरह-तरह से परेशान कि या। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। मौजूदा समय में डा.ममता गौड़ समय -समय पर नि:शुल्क चिकित्सा शिविर के माध्यम से गरीबों को इलाज व जांच मुहैया कराती है। डा.ममता गौड़ के मुताबिक जीवन के संघर्ष में परिवार का साथ बहुत जरूरी है। साथ ही अपने सपनों के साथ कभी समझौता नहीं करना चाहिए।

बीटीसी की पढ़ाई छोड़ ज्वाइन की पुलिस की नौकरी

राजधानी के महिला थाने की एसएचओ शारदा चौधरी २००१ में सब इंसपेक्टर की परिक्षा पास कर पुलि स विभाग में आयीं। मजबूत इच्छा शक्ति की शारदा चौधरी के लिए पुलिस विभाग में आने की राह आसान नहीं थी। परिवारिक परिवेश शिक्षा का था,जिसके कारण पढ़ाई में हमेशा से अव्वल रही,लेकिन पुलिस में आने की इजाजत नहीं थी,पिता शिक्षक थे। इस वजह से वो चाहते थे कि उनकी बेटी शिक्षक ही बने। लेकिन एक घटना ने पूरी तस्वीर ही बदल दी। १९९८ में शारदा चौधरी के भाई पुलिस विभाग में नौकरी के लिए प्रयास कर रहे थे,किन्हीं कारण वश उनकों सफलता नहीं मिली। अपने भाई को पुलिस की नौकरी के लिए प्रयास करता देख शारदा चौधरी की भी इच्छा थी कि वह पुलिस में जायें।

लेकिन पिता नहीं चाहते थे कि वह पुलिस में नौकरी करें। लेकिन चचा ने शारदा की इच्छा देख उनका सहयोग किया। जब शारदा चौधरी ने सब इंसपेक्टर की परिक्षा दी तब वह बीटीसी कर रहीं थी। उनका शिक्षक बनना लगभग तय था। उसी बीच सब इंसपेक्टर के परिक्षा का परिणाम भी आ गया। उन्होंने पुलिस में जाने की इच्छा जतायी। लेकिन पिता का आदेश नहीं मिला। शारदा चौधरी के मुताबिक उनके पिता को चचा ने समझाया तब जाकर २००१ में पुलिस में ज्वाइन कर सकी। मौजूदा समय में पुलिस की चैलेंजिंग जॉब के साथ अपने दो बच्चों को भी संभालती है। शारदा चौधरी के पति भी सरकारी सर्विस में है। शारदा चौधरी के मुताबिक पुलिस की सर्विस में परिवार को समय दे पाना कठिन हो जाता है,ऐसे में उकने पति उनका पूरा साथ देते हैं।

सेवानिवृत्त के बाद भी सेवा जारी

महानगर स्थित भाऊराव देवरस अस्पताल की स्त्री रोग विशेषज्ञ डा.रेणुका मिश्रा उन लोगों लिए मिशाल है,जो सेवानिवृत्त होने के बाद सामाजिक जीवन से कटने लगते हैं। डा.रेणुका मिश्रा वर्ष १९८४ में झांसी मेडिकल कालेज से चिकित्सक की पढ़ाई कर सामाजिक सेवा में कदम रखा और प्रदेश के अलग-अलग जिलों के सरक ारी अस्पतालों में स्त्री रोग विशेषज्ञ के पद पर तैनात रहीं। सेवानिवृत्त होने के बाद पिछले काफी समय से भाऊराव देवरस अस्पताल में आने वाले मरीजों को इलाज मुहैया करा रही हैं।

जिसकी डांट भी लगती है प्यारी

भाऊराव देवरस अस्पताल में स्टाफ नर्स के पद पर तैनात शांति वर्मा मरीजों के इलाज में जरा सी लापरवाही देखते ही स्टाफ से भी लड़ जाती है। लेकिन उनकी डांट भी स्टाफ को प्यारी लगती है। मरीजों के खाने से लेकर उनके दवा लेने तक पर पैनी नजर रखने वाली शांति वर्मा यदि किसी मरीज को लेटकर भोजन करता देख ले। तो सीधे उसके पास पहंच कर पहले उसे उठाती है। उसके बाद खुद भोजन करने का सही तरीक बताती है। इतना ही नहीं इलाज के अलावा वार्ड में साफ -सफाई में लापरवाही होने पर कर्मचारियों को तीखी प्रतिक्रिया झेलनी पड़ती है।

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