न्यूज। पार्किंसन रोग का नई तकनीक से शुरुआत में पहचान करके इलाज किये जाने में मदद मिल सकती है। ‘द लांसेट न्यूरोलॉजी” जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया है कि पार्किंसन रोग से संबद्ध असमान्य प्रोटीन संचित होने की पहचान करने वाली एक तकनीक इस बीमारी की शुरूआत में ही पहचान करने में मददगार हो सकती है।
अनुसंधान में यह पुष्टि की गई है कि यह तकनीक लोगों के इस रोग से पीड़ित होने का पता लगा सकती है। साथ ही, यह सुझाव दिया गया है कि यह इसके खतरे का सामना करने वाले लोगों आैर शुरूआती लक्षणों वाले व्यक्तियों की पहचान करने में मददगार हो सकती है।
इस तकनीक को ‘ए-सायनुक्लेन सीड एम्पलीफिकेशन एसे” के रूप में जाना जाता है।
मस्तिष्क में जमा ए-सायनुक्लेन प्रोटीन की मौजूदगी को पार्किंसन रोग का संकेत माना जाता है।
अमेरिका स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ पेंसीलवानिया पेरेलमैन स्कूल ऑफ मेडिसीन के प्राध्यापक एवं अध्ययन के सह लेखक एंड्रयू साइडरॉफ ने कहा, ”पार्किंसन रोग के लिए एक प्रभावकारी बायोमेकर की पहचान करने की पैथोलॉजी का स्थिति पर काफी प्रभाव पड़ सकता है। रोग की शीघ्र पहचान करना संभव हो सकता है, सर्वश्रेष्ठ उपचार ढूंढा जा सकता है आैर क्लीनिकल परीक्षण में तेजी लाई जा सकती है।
यह अध्ययन 1,123 प्रतिभागियों पर किया गया।