94% करीबी ही करते है बच्चों के साथ है यह

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लखनऊ। चाइल्ड एब्यूज में अपराधी की पहचान व आवश्यक सुबूत कैसे एकत्र किये जाए। एकत्र साक्ष्य को कैसे सुरक्षित रखा जा सकता है। इनका तकनीकी प्रशिक्षण किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों के द्वारा दिया जाएगा। यह जानकारी केजीएमयू फॉरेंसिक ऑडेंटोलॉजी यूनिट की प्रमुख डॉ. शालिनी गुप्ता ने केजीएमयू के ब्राउन हॉल में मंगलवार को फॉरेंसिक ऑडेंटोलॉजी व चाइल्ड एब्यूज में दी।

 

 

 

 

अंतरराष्ट्रीय स्तर की कार्यशाला को संबोधित करते हुए डॉ. शालिनी गुप्ता ने कहा कि केजीएमयू की फॉरेंसिक ऑडेंटोलॉजी यूनिट अन्य विभागों के साथ मिलकर सेना, पुलिस व आपदा प्रबंधन के लोगों को प्रशिक्षण देगा। जो आपात स्थिति में निपटने में सहायक होगा। कार्यशाला में केजीएमयू कुलपति डॉ. बिपिन पुरी ने कहा कि बाल उत्पीड़न के ज्यादातर प्रकरण में नजदीकी ही आरोपी होते हैं।

 

 

 

 

यही वजह है कि जल्द वह पकड़ में नहीं आ पाते हैं। वही लोग जांच को प्रभावित करते हुए जांच कराने में कतराते हैं। गलत जानकारी देकर पीड़ित परिवार को भ्रम में डालते हैं। उन्होंने एनसीआरबी के आंकड़ों को देखा जाए तो 94.99 प्रतिशत मामलों में अपराधी परिचित होते हैं। लिहाजा कई बार लोग मामला दर्ज तक नहीं कराते। इससे डॉक्टरों को भी जांच-पड़ताल में दिक्कत आती है। उन्होंने बताया कि दांतों का टेस्ट कर अपराधी की आसानी से पहचान की सकती है।

 

 

 

 

कमांड मिलिट्री डेंटल सेंटर के कमांडेंट में डॉ. सुब्रतो राय ने कहा कि सेना में जवानों की डेंटल प्रोफाइलिंग की जा रही है। इससे सभी की पहचान करना आसान हो गया है। उन्होंने बताया सीडीएस स्व. विपिन रावत के हादसे प्रकरण में इस प्रकरण में भी इसका प्रयोग किया गया था।
विशेषज्ञों ने बताया कि बाल उत्पीड़न सिर्फ शारीरिक शोषण ही नहीं, बल्कि बेरहमी से पीटना भी इस अपराध के दायरे में आता है। फिर मारपीट करने वाले चाहे व माता-पिता ही क्यों न हों ? कोलकाता के मेडिको लीगल विशेषज्ञ डॉ. जयंता दास सहित अन्य विशेषज्ञों ने अपने-अपने विचार कार्यशाला में रखें।

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