लखनऊ – योग करने की विद्या है इसका दूसरा नाम शरीर को स्वस्थ रखना वह मन को शांत करना है, स्वास्थ्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है. बल्कि स्वस्थ रहना पूरी तरह से हमारे हाथ में है, परंतु आज की परिस्थितियों में हम अपने को स्वस्थ नहीं रख पा रहे हैं रोग दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं. आज समाज में जितनी भी विकृतियां आ गई है व्यक्ति स्वार्थी होता जा रहा है, भ्रष्टाचार दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है इन सब का कारण सिर्फ मानव का शरीर व मानसिक रूप से अस्वस्थ होना है. स्वस्थ रहने के लिए कुछ मूल सिद्धांत हैं यदि वह सिद्धांत हमें मालूम हो जाए तो अपने को स्वस्थ रखना कोई कठिन नहीं है, योगासनों की नित्य प्रति करने से हो सकता है. हेल्थ का तात्पर्य है अपने स्थिर होना हमारी सारी शक्तियां बाहर की ओर दौड़ रही है, सब कुछ हम बाहर ढूंढ रहे हैं. आज के तनावपूर्ण वह शोरगुल के वातावरण में हम कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा है, और सारी ऊर्जा बाहर की ओर बह रही है.
हम हर बात के लिए दूसरों पर दोष डाल रहे हैं. आप अक्सर लोगों को कहते हुए सुनेंगे कि सर्दी थी इसीलिए जुखाम नजला हो गया मौसम खराब था, इसीलिए बुखार हो गया स्वास्थ्य की सारी प्रतिक्रिया अंदर से शुरू होती है और योग हमें अपने अंदर की ओर ले जाता है. प्राकृतिक ने शरीर की रचना अत्यंत पूर्ण की है और अपने को स्वस्थ रखने की पूरी व्यवस्था शरीर में ही कर दी है. आज जितने भी लोग यह नाम है या कल होंगे उन सब का कारण शरीर में विकार का रुक जाना ही है. यदि हम अपने शरीर का थोड़ा बहुत ध्यान रखें और विकार को शरीर में रुकने ना दें तो कभी भी हम रोगी नहीं होंगे योगासन इसमें बहुत सहायता करते हैं.
रोग होने पर मजबूरी में दवाई की सहायता अवश्य ले सकते हैं परंतु स्वास्थ्य लाभ तो शरीर के अंदर के अंगों के healthy होने से ही संभव है. औषधि भी तभी काम करती है, जब अंदर का शरीर सक्रिय हो जैसे हृदय ठीक काम करें. हार्ट सारे शरीर में रक्त की संचार कर विकार को द्वारा वापस हृदय में लाकर फेफड़ों से शुद्ध करवाएं पाचन तंत्र ठीक तरह से काम करें शरीर की अनेक ग्रंथियां अपना सुचारु रुप से शरीर का संतुलन बनाए रखें. मस्तिक शांत रहकर अपने नाड़े सूत्रों द्वारा हमारे सारे शरीर में संचालन करें. यदि औषधि ही आपको स्वस्थ देने वाली होती तो आज जिस तरह विज्ञान में उन्नति कि है हर रोग की औषधि का आविष्कार हुआ है. रोगों के उपचार के नए ढंग निकल आए हैं तब तो व्यक्ति को स्वस्थ होना चाहिए था. पर ऐसा नहीं हुआ बल्कि इसके उल्टी आज रोग बढ़ गए हैं.
व्यक्ति अधिक दुखी होता जा रहा है. उसका कारण निश्चित रूप से औषधि पर अत्यधिक निर्भरता ही है. आज के विज्ञान और उपचार संबंधी अविष्कारों का बहुत अधिक और सुचारु रुप से लाभ उठाया जा रहा है. यदि हम थोड़ा सा हम अपने अंदर जाएं और शरीर के अंदर की आवाज को सुने तो अंतर्मुखी हो और अपने शरीर को सहयोग दें, तो आपको कुछ भी कठिन दिखाई नहीं देगा. योग मानव समाज के शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ रखने में पूरी तरह सक्षम है जब आप शरीर से स्वस्थ व मन से शांत होते हैं तो आपके स्वभाव में आ जाते हैं.
आपका स्वभाव क्या है आपके साथ कोई धोखा करें गाली दे आपकी चोरी करें दूर व्यवहार करें झूठ बोले यह सब आपको अच्छा नहीं लगता है. जब आप अपने स्वभाव में होंगे तो आप किसी के साथ दूर व्यवहार नहीं करेंगे झूठ नहीं बोलेंगे धोखा नहीं देंगे. वास्तव में मानव की मूल प्रकृति के विषय में हमारा ज्ञान बहुत कम है इसके द्वारा सुखदाई भविष्य की कल्पना भी करना व्यर्थ है. प्राकृतिक से हम दिनों दिन दूर होते चले जा रहे हैं बनावटी जीवन पद्धति व्यापक का आवरण पहन कर हमें भ्रमित कर रही है कैंसर, मधुमेह, आदि रोग लोगों ने हमारी मुस्कान छीन ली है.
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