लखनऊ। नवजात शिशु के जन्म के एक महीने के अंदर ही श्रवण क्षमता की स्क्रीनिंग करानी चाहिए, ताकि अगर कोई दिक्कत है, तो कमी की पहचान कर इलाज किया जा सके। इस जांच के बाद भविष्य में कम या न सुनाई देने वाली बीमारियों से शिशु को बचाया जा सकता हैं।
यह सलाह लोहिया संस्थान के निदेशक डॉ. सीएम सिंह शनिवार को लोहिया संस्थान के शहीद पथ स्थित मातृ शिशु एवं रेफरल हॉस्पिटल में नवजात शिशुओं में श्रवण स्क्रीनिंग पर आयोजित कार्यक्रम में दी।इस मौके पर ईएनटी विभाग ने बाल रोग विभाग से श्रवण स्क्रीनिंग कार्यक्रम की शुरूआत की गयी।
निदेशक डॉ. सीएम सिंह ने कहा कि अभिभावकों को नवजात शिशुओं की श्रवण स्क्रीनिंग जरूरी करानी चाहिए, ताकि सुनने की क्षमता के नुकसान की जल्द पहचाना जा सके। उन्होंने कहा कि आंकड़ोंा को देखा जाए तो प्रत्येक वर्ष काफी बच्चे सुनने की दिक्कत के साथ पैदा होते हैं। जिसका यदि समय रहते न पता चले तो यह उनके बोलने, भाषा और सामाजिक विकास को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकता है। यदि जन्म के एक माह के भीतर स्क्रीनिंग की जाती है और सुनने की कमी की पहचान हो जाती है। तो बच्चे के पास भविष्य में अपनी पूर्ण विकास क्षमता तक पहुंचने का अवसर होता है।
बाल रोग विभाग प्रमुख डॉ. दीप्ति अग्रवाल व ईएनटी विभाग प्रमुख डॉ. आशीष चंद्र अग्रवाल ने कहा कि कार्यक्रम कॉकलियर इम्प्लांट ग्रुप ऑफ इंडिया की ओर से आयोजित किया गया।
इस मौके पर एमबीबीएस छात्रों ने नवजात शिशुओं में श्रवण स्क्रीनिंग को लेकर नुक्कड़ नाटक पेश किया। ऑडियोलॉजिस्ट एवं स्पीच थेरेपिस्ट मयंक अवस्थी ने सुनने की हानि की शीघ्र पहचान की भूमिका पर जानकारी साझा की। इस मौके पर ईएनटी विभाग की डॉ. तरुणी लालचंदानी, सीएमएस डॉ. विक्रम सिंह, डॉ. तनवीर रोशन, कार्डियोलॉजी विभाग के विभाग प्रमुख डॉ. भुवन चंद्र तिवारी मौजूद थे।