लखनऊ। गोमती नगर के डा. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में लोहिया अस्पताल के विलय के साथ ही विभिन्न पदों की तैनाती को लेकर अभी से ही चर्चा होने लगी है। प्राचार्य के पद से लेकर मुख्य चिकित्सा अधीक्षक के पद तक तैनाती को लेकर कयास लगने लगे है। संस्थान के सूत्रों का मानना है कि विलय के बाद शासन किसी अनुभवी व जिम्मेदार डाक्टर या अधिकारी को ही महत्वपूर्ण तैनाती दे सकती हंै। बताते है कि वर्तमान में जिम्मेदारी अधिकारी व्यवस्था की कमान सम्हाल नहीं पा रहे है।
एमबीबीएस के नये सत्र से पहले लोहिया अस्पताल का लोंिहया संस्थान में विलय तय हो गया है। यह विलय प्रदेश सरकार के लिए चिकित्सा क्षेत्र में नया आयाम निर्धारित करेंगी। विलय के बाद संस्थान में मुख्य चिकित्सा अधीक्षक पद महत्वपूर्ण हो जाएगा। इसके अलावा प्राचार्य का पद भी सृजित होने की संभावना है। प्रशासनिक जिम्मेदारी के लिए पदों का सृजन किया जाएगा। अगर संस्थान के सूत्रों की माने तो वर्तमान में तैनात जिम्मेदार अधिकारी का कमान अपने ही डाक्टरों पर छूट गयी है। उनके निर्देशों का पालन ही उनके विभाग के डाक्टर नहीं कर रहे है। ऐसे में प्रदेश सरकार द्वारा गरीब मरीजों को उच्चस्तरीय इलाज दिये जाने की योजना पर विराम लग रहा है।
हालत यह है कि जब काफी संख्या में गरीब मरीज बिना इलाज कराये पलायन कर चुके है। तब पीजीआई के विशेषज्ञ डाक्टरों की मदद से आपरेशन करने की तैयारी शुरु हो चुकी है। संस्थान में ही चर्चा है कि विशेषज्ञ डाक्टर लगातार निजी प्रैक्टिस कर रहे है। उन पर निर्देशों का कोई असर ही नहीं पड़ रहा है। बताया जाता है कि संस्थान में एमबीबीएस छात्र भी खानपान व्यवस्था से नाराजगी जता चुके है। सूत्रों की माने तो विलय के बाद शासन चिकित्सा से लेकर क्लीनिकल व्यवस्था तक सुचारू रूप से चाहता है। ऐसे में महत्वपूर्ण पदों पर तैनाती के लिए कवायद शुरू हो गयी है आैर इन पदों पर संस्थान व अस्पताल में तैनात विशेषज्ञ डाक्टर अपनी- अपनी दावेदारी कर चुके है।
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