लखनऊ। हार्ट की बंद नसों (क्रॉनिक टोटल ऑक्लूज़न सीटीओ) को बिना ऑपरेशन खोले जाने की तकनीक अब भारत में तेज़ी से विकसित हो रही है। इसी विषय को लेकर इंडो-जैपनीज सीटीओ क्लब का ग्यारहवां समिट राजधानी में शुक्रवार को आयोजित किया गया। समिट का उद्घाटन प्रदेश के उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने करते हुए कहा कि कार्डियक डिजीज के प्रति प्रदेश सरकार योजना संचालित करके सरकारी अस्पतालों व स्वास्थ्य केन्द्रों के डाक्टरों, नर्सिंग स्टाफ व स्वास्थ्य कर्मियों को प्रशिक्षित कर रही है।
इससे हार्ट के मरीज को तत्काल उच्चस्तरीय प्राथमिक इलाज मिल सकेगा।
इसमें भारत, जापान और यूरोप के विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया। इस खास इवेंट में देश-विदेश से आये कार्डियोलॉजिस्ट ने विभिन्न जटिल केस पर चर्चा की, जिनमें एंटिग्रेड, रेट्रोग्रेड जैसी एडवांस तकनीकों का उपयोग किया गया।
नवीन तकनीक के इस्तेमाल पर डॉ. पी. के. गोयल, कोर्स डायरेक्टर और ऑर्गनाइजिंग सेकरेटरी, आईजेसीटीओ ने किहा कि लगभग हर पांचवां दिल का मरीज़ क्रॉनिक टोटल ऑक्लूज़न यानी 100 प्रतिशत बंद नसों की समस्या से जूझ रहा होता है।
ज़्यादातर मामलों में इन मरीज़ों को बाईपास सर्जरी की सलाह दी जाती है ,क्योंकि नसों को बिना सर्जरी खोलने की तकनीक और अनुभव हर कार्डियोलॉजिस्ट के पास नहीं होता। लेकिन अब भारत में नई एडवांस तकनीकों जैसे ऑर्थोगोनल या बाई-प्लेन इमेजिंग आधारित थ्री-डायमेंशनल वायरिंग और इंट्रावैस्कुलर गाइडेंस ने यह संभव बना दिया है कि बिना छाती खोले, इन नसों को सुरक्षित रूप से खोला जा सके। आने वाले समय में यही स्किल हर इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट के लिए महत्वपूर्ण हो जाएगी। जापानी और यूरोपीय विशेषज्ञों ने भारतीय डॉक्टरों के साथ मिलकर जटिल मामलों में 90प्रतिशत से ज़्यादा सफलता दर हासिल करने के अनुभव साझा किए।