स्पाइन सर्जरी मैं नया आयाम स्थापित करेगा केजीएमयू

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लखनऊ . किंग जॉर्ज  चिकित्सा विश्वविद्यालय के आर्थोपेडिक  विभाग के 66 वर्ष पूरे होने पर अब विभाग   स्पाइन सर्जरी को विस्तार दे कर एक नया मुकाम हासिल करने को तैयार है। विभाग में अब स्पाइन सर्जरी के मिस (मिनिमली इनवेसिव स्पाइन सर्जनरी) तकनीक का प्रयोग किया जाएगा। इस तकनीक में मरीज को कम दर्द, कम खर्च और कम समय में बेहतर इलाज मिल सकेगा। इसके लिए होने वाली कार्यशाला में यूएस के स्पाइन सर्जन डॉ. आलोक डी. सरन लाइव सर्जरी कर केजीएमयू डॉक्टरों को नई तकनीक के साथ सर्जरी की अभी सुना था बारीकियां बताएंगे।

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यह जानकारी आर्थोपैडिक सर्जरी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. जीके सिंह ने दी। विभागाध्यक्ष प्रो. सिंह ने बताया कि  यह विभाग देश के सभी चिकित्सा संस्थानों में पहला आर्थोपैडिक विभाग है जिसने स्वतंत्र रूप से कार्य करना शुरू किया था क्योंकि पूर्व में यह सर्जरी विभाग के साथ मिलकर कार्य करता था। वर्ष 1951 में विभाग में पहला एमएस आर्थोपैडिक सर्जरी कोर्स शुरू हुआ था। देश में पहली बार आर्थोपैडिक सर्जरी में डिप्लोमा कोर्स भी केजीएमयू में ही शुरू हुआ था। इस अवसर पर मौजूद प्रो. आरएन श्रीवास्तव ने बताया कि उत्तर भारत में केजीएमयू में पहली बार 1979 में स्पाइन सर्जरी की शुरुआत की गयी थी। 2008 में मिलिगेंट बोन टयूमर का इलाज शुरू हुआ। उस समय यह सर्जरी काफी जटिल कहलाई जाती थी . प्रो. श्रीवास्तव ने बताया कि इसके अतिरिक्त कई अन्य कोर्स व इलाज रहे जो पहली बार केजीएमयू में ही शुरू हुए। प्रो. श्रीवास्तव ने बताया कि विभाग में प्रतिवर्ष करीब 400 स्पाइन सर्जरी की जाती हैं जो अपने आप में बड़ी उपलब्धि  है।

प्रो. श्रीवास्तव ने बताया कि स्पाइन सर्जरी के क्षेत्र में केजीएमयू और आगे बढऩे की तैयारी में है। उन्होंने कहा कि अब विभाग स्पाइन सर्जरी के लिए प्रयोग हो रही नयी तकनीक मिस से रोगियों की सर्जरी करेगा। इस तकनीक में रीढ़ की हड्डी के पास एक तीन सेंटीमीटर का चीरा लगाकर छोटे उपकरणों के माध्यम से स्पाइन की सर्जरी होगी। यह तकनीक काफी सुरक्षित एवं कम समय में होती है जिससे मरीज को अधिक दिनों तक चिकित्सालय में रहना भी नहीं होता। उन्होंने बताया कि अभी विभाग में सामान्य रूप से ओपन सर्जरी होती है जिसमें मरीज में 15 सेंटीमीटर का चीरा लगाया जाता है। उन्होंने कहा कि इसके विभाग के चिकित्सकों को प्रशिक्षित किया जाएगा और उसके बाद ही यह सर्जरी शुरू होगी।
उन्होंने बताया स्टेम सेल तकनीक पर भी हो रहा कार्य हो रहा है.

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