रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में कारगर है च्यवनप्राश

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लखनऊ। मानसून कई तरह की बीमारियां भी साथ लाता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता के कमजोर होने पर संक्रमण की चपेट में आ सकते है। इस दौरान रोग प्रतिरोधक क्षमता को नियंत्रित करने के लिए आयुर्वेद कारगर है। इसमें मुख्य रूप से च्यवनप्राश महत्वपूर्ण होता है। इसका सेवन सर्दियों में ही नहीं बल्कि वर्ष भर किया जा सकता है। खास कर यह मानसून के दिनों में इसका प्रयोग शरीर के लिए बेहतर रहता है। यह जानकारी दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल के आयुर्वेदिक डाक्टर डा. परमेश्वर अरोड़ा ने पत्रकार वार्ता में दी।

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डा. अरोड़ा शुक्रवार को लालबाग स्थित एक गेस्ट हाऊस में पत्रकारों को संबोधित कर रहे थे। डाबर इंडिया लिमिटेड द्वारा आयोजित पत्रकार वार्ता में उन्होंने बताया कि अक्सर बरसात में सर्दी एवं खाँसी, मलेरिया, डेंगू, टायफाइड और निमोनिया जैसी बीमारियां चपेट में ले लेती हैं। प्राचीन आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति पर आधारित औषधि की सही मात्रा, मानसून के रोगाणुओं से लड़ने में मददगार होती है। उन्होंने बताया कि एलोपैथिक में बीमारियों का इलाज किया जाता है, जबकि प्राचीन भारतीय जड़ी-बूटियों और आयुर्वेद में दिए गए सूत्र हमारी जीवन शैली को स्वस्थ एवं ऊर्जावान बनाते हैं। इनमें च्यवनप्राश एक प्रसिद्ध आयुर्वेदिक सूत्र है, जिसका इस्तेमाल कई दशकों से रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने और संक्रमण से सुरक्षा प्रदान करने के लिए किया जा रहा है।

अमला (भारतीय आंवला) च्यवनप्राश का प्रमुख घटक है, जो रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने वाले गुणों के लिए जाना जाता है। उन्होंने बताया कि रसायन तंत्र आयुर्वेद की आठ विशेषताओं में से एक है। इसमें नुस्खे, आहार अनुशासन आैर स्वास्थ्य को बढ़ावा देने वाले व्यवहार शामिल है। ग्रुप प्रोडेक्ट मैनेजर अक्षय कपूर ने कहा कि प्रामाणिक आयुर्वेद की पुस्तकों, पांडुलिपियों के अध्ययन के माध्यम से आैषधियों को तैयार करने के बाद परामर्श से सही मात्रा में सेवन करने असरकारक होती है।

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