लखनऊ। किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय में तीन दिन बाद से पीडियाट्रिक आर्थोपेडिक्स विभाग शुरू हो जाएगा। विभाग संचालन के लिए सात नर्सिंग स्टाफ दे दिए हैं। इससे पहले शासन से पांच संकाय सदस्य व तीन रेजीडेंट के पद स्वीकृत हो चुके है। केजीएमयू में हड्डी रोग विभाग से अलग होकर पीडियाट्रिक आर्थोपेडिक्स विभाग बनाया गया। बच्चों की हड्ढी रोग की विशेषज्ञता होने के कारण प्रो. अजय कुमार विभाग प्रमुख बनाया गया। तेरह जून वर्ष 2008 को पीडियाट्रिक आर्थोपेडिक्स विभाग की अनुमति मिल गयी। मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया ने भी इसकी संस्तुति देते हुए सुपर स्पेशियलिटी के तहत एमसीएच की चार सीटों का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।
इस दौरान केजीएमयू में इस विभाग को शुरू करने के लिए लगभग पचास लाख रुपये की लागत से 20 बिस्तरों का वार्ड भी तैयार कर लिया गया। इसके बाद यह तय किया गया कि विभाग नये भवन में शिफ्ट हो जाएगा। फिर तय किया गया कि आर्थोपेडिक्स से अलग होकर बनने वाले पीडियाट्रिक आर्थोपेडिक्स के साथ ही स्पोटर्स मेडिसिन, स्पाइन सर्जरी व आर्थोप्लास्टि के लिए अलग बहुमंजिला भवन का निर्माण कराया जाएगा। तब तक यह निर्णय लिया गया कि जब तक नये भवन का निर्माण नहीं होता है, तब तक लिंब सेंटर में और शताब्दी के ग्राउंट फ्लोर पर खाली स्थान पर वार्ड विकसित कर लिए जाए। इसी के तहत पीडियाट्रिक आर्थोपेडिक्स विभागाध्यक्ष प्रो. अजय सिंह ने लिंब सेंटर में वार्ड को विकसित करा लिया।
इस बीच विभाग को विस्तार देने के लिए शासन से पांच संकाय सदस्य व तीन रेजीडेंट के पद स्वीकृत हो गए, लेकिन 54 नर्सिंग व पैरामेडिकल स्टाफ की तैनाती के दिये गये प्रस्ताव पर वित्त विभाग ने आपत्ति लगा दी। इससे विभाग शुरू नही हो पाया। यही नहीं एमसीएच की सीटों पर भी संकट आ गया। विभागाध्यक्ष ने केजीएमयू प्रशासन से गुहार लगायी । इस पर केजीएमयू प्रशासन ने दो दिन पहले आंतरिक स्त्रोत से ही सात नर्सिंग स्टाफ देने की संस्तुति कर दी है, जब तक विभाग के लिए शासन से नए स्टाफ की मंजूरी नहीं मिलती है तब तक इन स्टाफ से काम चलाया जाएगा। विभाग के शुरू होने से उन बच्चों को खासतौर से फायदा मिलेगा, जो जिनके हाथ पैर जन्मजात टेढे मेढे हो जाते हैं आैर सही इलाज नहीं हो पाता है।
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