अब नहीं करना कोई बहाना, फाइलेरिया से बचाव की दवा है खाना

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– आशा के सामने खुद दवा खाएं और परिवार वालों को भी खिलाएं

 

 

 

 

 

लखनऊ। “…*जो गलती हमने की वह आप न करें*” और लाइलाज संक्रामक बीमारी फाइलेरिया (हाथीपाँव) से बचने के लिए साल में एक बार दवा का सेवन जरूर करें। यह बात जन-जन तक पहुंचाने में जुटे हैं फाइलेरिया नेटवर्क और पेशेंट सपोर्ट ग्रुप के सदस्य। इसमें जनप्रतिनिधि और समुदाय के जागरूक नागरिक भी पूरा साथ दे रहे हैं। प्रदेश के फाइलेरिया प्रभावित 19 जिलों में 10 फरवरी से शुरू हो रहे सर्वजन दवा सेवन कार्यक्रम (एमडीए/आईडीए राउंड) को लेकर स्वास्थ्य महकमा भी पूरी तरह अलर्ट है। वह भी अपने स्तर से यही सन्देश हर वर्ग तक पहुंचाने में जुटा है कि बिना कोई बहाना किये स्वास्थ्य कार्यकर्ता के सामने फाइलेरिया से बचाव की दवा का खुद सेवन करें और घर-परिवार के सदस्यों को भी सेवन कराएँ।

 

 

 

 

बक्शी का तालाब ब्लाक के कठवारा गाँव की फाइलेरिया नेटवर्क की सदस्य 65 वर्षीया मालती सिंह के जीवन का अब एक ही मकसद है कि- लोगों को फाइलेरिया से बचाना है। इसके लिए वह जहाँ भी जाती हैं वहां लोगों को यही बताती हैं कि इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है, इसलिए समझदारी इसी में है कि बचाव की दवा का सेवन जरूर करें। गाँव में आयोजित होने वाले समारोहों में भी वह यही बात बताती हैं कि जिस पीड़ा से उनको गुजरना पड़ा है, उससे किसी और को न गुजरना पड़े क्योंकि यह बीमारी जानलेवा तो नहीं है लेकिन शरीर को मृत समान जरूर बना देती है। यहाँ तक कि लोग अपनी दैनिक क्रिया तक सही से नहीं कर पाते हैं। वह कहती हैं कि स्वास्थ्य विभाग के मार्गदर्शन में सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च (सीफार) द्वारा तैयार किये गए फाइलेरिया रोगी नेटवर्क और पेशेंट सपोर्ट ग्रुप के हर सदस्य की यही कोशिश है कि 10 फरवरी को शुरू हो रहे सर्वजन दवा सेवन कार्यक्रम में ज्यादा से ज्यादा लोग दवा का सेवन करें और फाइलेरिया से सुरक्षित बनें।

 

 

 

 

इसी तरह मोहनलालगंज ब्लाक के भदेसवा गाँव के अजय का कहना है कि “मेरे जीवन का सपना सेना में भर्ती होकर देश सेवा करने का था। इसके लिए लम्बे समय तक खूब पसीना बहाया, परिवार वालों ने भी खानपान का अतिरिक्त ख्याल रखा ताकि सपना साकार हो सके। सेना में भर्ती के लिए हुई जाँच में पता चला कि मुझको तो फाइलेरिया है। उस वक्त तो मानो मेरे पैरों तले से जमीन ही खिसक गयी और सपने चूर-चूर हो गए।“ उस वक्त मुझे जानकारी हुई कि फाइलेरिया संक्रमण के लक्षण दिखने में पांच से 15 साल लग सकते हैं। मेरी गलती वहीँ पर हुई थी कि मैंने समय पर फाइलेरिया से बचाव की दवा नहीं खायी थी। अब मुझे यह अच्छी तरह से समझ आ गया है कि फाइलेरिया से बचाव के लिए यह दवा कितनी जरूरी है। इसलिए सभी से यही कहना है कि …जो गलती मैंने की वह आप न करें और दवा का सेवन जरूर करें ताकि आपके सारे सपने साकार हो सकें।

 

 

 

 

समुदाय के जागरूक नागरिक भी मुहिम को सफल बनाने में जुटे हैं। इसी में शामिल हैं राजधानी के सैनिक नगर जनकल्याण समिति के संरक्षक कर्नल आदि शंकर मिश्र। वह कालोनी के घर-घर सन्देश पहुंचाने में जुटे हैं कि 10 फरवरी को फाइलेरिया से बचाव की दवा जरूर खाना। मार्निंग वाक के समय भी जो मिलता है, उसे दवा के फायदे समझाते हैं। मच्छरों से बचाव के बारे में भी बताते हैं क्योंकि फाइलेरिया क्यूलेक्स मच्छर के काटने से होती है। संक्रमित को काटने के बाद मच्छर स्वस्थ व्यक्ति को काटता है तो वह भी संक्रमित हो जाता है। मच्छरों को पनपने से रोकने के लिए घर व आस-पास साफ-सफाई रखें, जलजमाव न होने दें। मच्छरदानी का इस्तेमाल करें, पूरी आस्तीन के कपड़े पहनें।
फाइलेरिया/कालाजार के राज्य कार्यक्रम अधिकारी डॉ. वी. पी. सिंह का कहना है कि एक साल से कम उम्र के बच्चों, गर्भवती और गंभीर बीमारी से ग्रसित को छोड़कर सभी को फाइलेरिया से बचाव की दवा का सेवन करना है। एक से दो साल के बच्चों को अलबेंडाजोल की आधी गोली पीसकर खिलाई जायेगी। स्वास्थ्य कार्यकर्ता के सामने ही दवा का सेवन करें। स्वास्थ्य कार्यकर्ता आपकी लम्बाई आदि के आधार पर जो भी दवा दें, उन सभी का सेवन करें। ऐसा कोई बहाना न करें कि अभी नाश्ता नहीं किये हैं या अभी सर्दी-खांसी है, बाद में खा लेंगे आदि क्योंकि आज का यही बहाना आपको जीवनभर के लिए मुसीबत में डाल सकता है। इसलिए दवाओं का सेवन कर समाज को फाइलेरिया मुक्त बनायें। डॉ. सिंह का कहना है कि दवा खाने के बाद जी मिचलाना, चक्कर आना या उल्टी लगे तो घबराने की जरूरत नहीं है। ऐसा शरीर में फाइलेरिया के परजीवी होने के कारण हो सकता है, जो दवा खाने के उपरांत मरते हैं जिससे इस तरह की प्रतिक्रिया हो सकती है जो कुछ देर में स्वतः ठीक हो जाती है।

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