लखनऊ। डिपार्टमेंट ऑफ आर्थोपेडिक के.जी.एम.सी. के अंतर्गत वर्ष 1971 में आयरन लेडी आफ इंडिया तथा तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने बांग्लादेश वार के समय 9 करोड़ रूपया दिया था, लॉटरी फंड से इसका नाम आर्टिफिशियल लिंब सेंटर एवं प्रोस्थेटिक वर्कशॉप रखा गया। उस समय वर्कशॉप, फिजियोथेरेपी, आक्युपेशनल थेरेपी, वोकेशनल सेक्शन तथा ओपीडी का स्थापना एवं संचालन शुरू हुआ। 1974 से 76 के पूर्व बिल्डिंग का निर्माण हुआ और सौ बेड का अस्पताल पैराप्लोजिया सेंटर, ऑपरेशन थिएटर वगैरा शुरू हुए। उसी समय दिव्यांगों के लिए लकड़ी का हाल और रीक्रिएशनल यूनिट शुरू हुआ ,जहां पर विकलांगो को शारीरिक रूप से सक्षम बनाए जाने के लिए खेलकूद सिखाएं जाते थे, जिसके माध्यम से पैरा ओलंपिक 1976-1981 में यहां के दिव्यांगों ने 6 गोल्ड मेडल जीते तभी वोकेशनल यूनिट की स्थापना हुई तथा आजीविका हेतु आत्मनिर्भर बनाने के लिए रोजगारपरक कार्य भी सिखाए जाते थे।
स्थापना काल के समय 154 पदों का सृजन किया गया था, संचालन के लिए यह हड्डी विभाग के अधीन था, पर इसका पूर्ण रूप से पृथक बजट शासन द्वारा आवंटित होता था। वर्ष 1976 में इस विभाग का नाम आर.एल.सी. रखा गया तब इसका उद्घाटन तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी ने किया था, उस समय के.जी.एम.सी. लखनऊ विश्वविद्यालय का अंग था। वर्ष 1980 में इस विभाग को स्वतंत्र सोसाइटी में परिवर्तित किया गया था, जिसको बाद में शासन द्वारा 1986 में भंग करके राज्य सरकार के अधीन एक पूर्णकालिक निदेशालय बना दिया गया और तब इसका पृथक निदेशक बनाया गया जिसका नियंत्रण शासन द्वारा नामित 11 सदस्य समिति के पास था तथा जिसके अध्यक्ष मुख्य सचिव जी होते थे और आज भी हैं, वो शासनादेश आज भी यथावत है।

वर्ष 1992 में के.जी.एम.यू. लखनऊ विश्वविद्यालय के अधीन फिर चला गया पर लिंब सेंटर के कर्मचारियों ने माननीय उच्च न्यायालय याचिका संख्या 5809-92 के माध्यम से स्टे ले लिया, जिसमें लिंब सेंटर पूर्ण रूप से शासन का अंग ही रहा। बाद में शासन द्वारा वर्ष 1994 में एक शासनादेश के माध्यम से इस विभाग को केवल शैक्षणिक उद्देश्य के लिए के.जी.एम.सी. में संबद्ध किया गया बाकी पूरा विभाग वर्ष 2002 तक शासन के नियंत्रण में ही रहा। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 1986-1994 निर्गत शासनादेश एवं के.जी.एम.यू. एक्ट 2002 अध्याय 2 के कॉलम 04 के तहत उक्त लिंब सेंटर का प्रयोग केवल दिव्यांगों के पुनर्वास कार्य हेतु करना निर्धारित है तथा इसको कोई अन्य अस्पताल बनाने से इसका उल्लंघन होगा एवं दिव्यांगों का पुनर्वास कार्य बाधित होगा । इस केंद्र में दिव्यांगों के कृत्रिम उपकरण निर्माण एवं मरम्मत करने हेतु एकमात्र बृहद कार्यशाला है
कर्मचारी शिक्षक मोर्चा के उपाध्यक्ष सुनील यादव बताते है कि लिंब सेंटर के भवन में प्रमुख पांच विभाग आर्थोपेडिक सर्जरी, फिजिकल मेडिसिन एवं पुनर्वास ,गठिया रोग विभाग, पीडियाट्रिक ऑर्थोपेडिक सर्जरी तथा स्पोर्ट्स मेडिसिन विभागों की ओपीडी तथा वार्ड संचालित हो रहे हैं, जो कि प्रदेश में केवल एकमात्र जगह ही उपलब्ध हैं। साथ ही पीएमआर विभाग प्रदेश में एकमात्र ऐसा जगह है जो जापानी इंसेफेलाइटिस के मरीजों का समुचित इलाज मुहैया करा रहा है।
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