लखनऊ। किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय में नेफ्रोलॉजी विभाग के डाक्टरों की कमी से अब मरीजों की मुश्किलें बढ़ने लगी है। किडनी की समस्या को लेकर ओपीडी से लेकर ट्रामा सेंटर तक मरीज इलाज के लिए परिक्रमा करते रहते है, लेकिन उन्हें इलाज मुहैया नही हो पा रहा है। मेडिसिन विभाग के डाक्टर किडनी डायलिसिस का परामर्श देते है, तो शताब्दी अस्पताल में चल रही डायलिसिस यूनिट की वेंटिग लिस्ट में डाल दिया जाता है।
नेफ्रोलॉजी विभाग के डाक्टर को इस्तीफा दिये हुए दो महीने से ज्यादा हो गया है। इसके बाद भी केजीएमयू प्रशासन अभी एक भी डाक्टर नेफ्रालॉजी विभाग के लिए तैयार कर पाया है। ऐसे में गैर जनपदों से आने वाले क्रिएटिनिन बढ़ने पर मरीजों को केजीएमयू रेफर कर दिया जाता है। मरीज सुबह – सुबह ओपीडी में पर्चा के लिए लाइन लेता है तो पता चलता है कि नेफ्रोलॉजी का डाक्टर ही नहीं है यहां पर। ऐसे में मरीजों को मेडिसिन विभाग के डाक्टर से परामर्श लेने भेज दिया जाता है।
नेफ्रोलॉजी के बढ़ते मरीजों मेडिसिन विभाग के डाक्टर ओपीडी में परामर्श दे देते है। कुछ मरीजों की जिनकी क्रिएटिनिन बहुत ज्यादा होती है, तो उसे डायलिसिस यूनिट भेज दिया जाता है, परन्तु यहां पर ज्यादातर मरीजों को खराब उपकरण का सामना करना पड़ता है आैर मशीनें ठीक होती है। उन पर वेंटिंग हो जाती है। इससे बेहाल मरीज निजी अस्पताल में जाने को मजबूर हो जाते है।
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