लखनऊ। किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय प्रशासन की लापरवाही से निजी सुरक्षा एजेसियों के गार्डो का वर्चस्व बढ़ने लगा हंै। यह गार्ड तीमारदार की पिटाई करने से लेकर मरीज का क्लीनिकल काम तक करने में पारंगत है। ट्रामा सेंटर में खुले आम इनको मरीजों का इलाज करते देखा जा सकता है। इन कामों का वह मनमाना शुल्क भी वसूल करते है। क्वीन मेरी अस्पताल में भी मरीज के लिए तीमारदारों का नाम स्पीकर से बुलाते है आैर लेकिन तैनात सुरक्षागार्ड अंदर जाने के लिए बिना पास के अंदर नहीं जाने देते है।
मरीजों की ट्रैकि या (नली) व इसोफेगस में नली भी डाल देते है –
ट्रामा सेंटर में कुछ दिन पहले सुरक्षागार्ड ने तीमारदार की लाठी डंडे से पिटाई कर दी थी। इस प्रकरण में सुरक्षागार्ड पर कोई कार्रवाई नहीं की गयी। इसके बाद भी ट्रामा सेंटर में सुरक्षागार्डो का वर्चस्व कायम है। यहां पर प्रशिक्षित पैरामेडिकल के द्वारा किये जाने वाला काम सुरक्षा गार्ड मरीजों की ट्रैकि या (नली) व इसोफेगस में नली भी डाल देते है। जरा सी चूक मरीज की जान पर भी बन सकती है। इस बारे में ट्रामा सेंटर के जिम्मेदार अधिकारी का मानना है कि उनकी जानकारी में नही है। यह काम प्रशिक्षित पैरामेडिकल को करना चाहिए। उधर क्वीन मेरी अस्पताल में मेन गेट से लेकर अंदर तक गार्डो की वर्चस्व है।
कॉल आने पर भी तीमारदार से यह ताकीद करते है –
यहां पर मरीज अंदर भर्ती होता है आैर अगर उसे कुछ अतिरिक्त दवा लाने या अन्य कार्य की आवश्यकता होती है, तो तीमारदार को स्पीकर से कॉल करके बुला लिया जाता है, लेकिन ज्यादातर सुरक्षा गार्ड अंदर से कॉल आने पर भी तीमारदार से यह ताकीद करते है कि बुलाये जाने वाला शख्स वही है। तीमारदार अवधेश बताते है कि अंदर उनकी पत्नी भर्ती थी अौर उन्हे बुलाया गया, लेकिन फिर भी उन्हें सुरक्षा गार्ड ने रोक लिया। उसका कहना था कि परिचय पत्र दिखाये या पास दिखाये तभी जाने देंगे।
काफी अनुरोध के बाद जाने दिया लेकिन लौटते वक्त चाय- पानी का शुल्क ले लिया। रात में भी मरीज नये आने पर इमरजेंसी में जाने से पहले सुरक्षागार्ड ही मरीज से जानकारी लेने लगते है कि मानो वही डाक्टर हो। ऐसे में तीमारदार झल्ला जाता है, तो उसकी अभद्रता कही जाती है।