लखनऊ। गोमती नगर स्थित डा. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान के कैंसर रोग विशेषज्ञों ने कैंसर पीड़ित महिला मरीज पर हाईपैक तकनीक का प्रयोग करके जीवन दान दे दिया। महिला ओवेरियन कैंसर से जूझ रही थी। विशेषज्ञों ने हाइपरथर्मिक इंट्रापेरिटोनल कीमोथेरेपी (एचआईपीईसी) के माध्यम से सर्जरी के बाद शेष बची कैंसरग्रस्त छोटी-छोटी गांठों को नष्ट किया गया। इससे मरीज पर कीमोथेरेपी का होने वाला दुष्प्रभाव कम होगा।
लखनऊ निवासी 66 बुजुर्ग महिला ओवेरियन कैंसर से पीड़ित चल रही थी। परेशानी बढ़ने पर जांच में पता चला कि ओवेरियर कैंसर थर्ड स्टेज में पहुंच गया है। मरीज की उम्र व अन्य दिक्कतों को देखते हुए कैंसर रोग विशेषज्ञ डा. विकास शर्मा एवं डा. गौरव गुप्ता ने नयी तकनीक प्रयोग करने का निर्णय लिया। इस मरीज को पहले नीयो एडजुवेंट कीमोथेरैपी और फिर सीआरएस एवं हाईपेक सर्जरी तकनीक प्रयोग की गयी। नयी तकनीक से सर्जरी करने के बाद मरीज की बेहतर ठीक है। डा. शर्मा ने बताया कि पारंपरिक कीमोथेरेपी में कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने के लिए सर्जरी के बाद नसों के माध्यम से दवा को ब्लड में पहुंचा दिया जाता है। इस हाईपेक तकनीक में सर्जरी के बाद पेट में कैंसर की दवा पहुंचाई जाती है। इसें हाईपेक मशीन का प्रयोग होता है। इस तकनीक में प्रयोग के लिए अंतर राष्ट्रीय स्तर पर गाइडलाइन बनी है। गाइडलाइन के अनुसार मरीज में पहले साइटो रिडक्टिव सर्जरी (सीआरएस) के जरिए गर्भाशय, अंडाशय और आंतों का कुछ हिस्सा, गाल ब्लैडर, पेरीटोनियम, लिम्फ नोड्स को हटाया गया। इसके बाद हाईपेक तकनीक से प्रभावित कोशिकाओं पर ही सजरी के दौरान कीमोथेरैपी दी जाती है। इससे शरीर में कैंसरग्रस्त बची कोशिकाओं पर तत्काल दवा का असर होता है। मरीज पर कीमोथेरैपी का दुष्प्रभाव कम होता है। इस तकनीक में खास बात यह होती है कि मरीज को सही मात्रा में दवा देना और सही तापमान देना चुनौतिपूर्ण होता है। एनेस्थिसिया विभाग के प्रमुख डा. दीपक मालवीय ने बताया कि इस तकनीक में मरीज को बेहोशी देना भी चुनौतिपूर्ण होता है। सर्जरी के बाद पोस्ट आपरेटिव वार्ड में पल- पल की निगरानी करनी पड़ती है। सर्जरी वाली टीम में आंकोलॉजी सर्जन डा. विकास शर्मा के अलावा डा. गौरव सिंह, डा. अमित गर्ग, डा. गोपी, मेडिकल आंकोलॉजिस्ट डा. गौरव गुप्ता, एनेस्थेटिस्ट डा. सुजीत राय, ओटी असिस्टेंट रुद्र, रवींद्र, सिस्टर नम्रता आदि शामिल थे।