लखनऊ। बच्चों और किशोरों में लिवर की विफलता कई कारणों से होती है, लेकिन उनमें से सबसे आम हेपेटाइटिस ए है, जो लगभग 40 से 50 प्रतिशत तक होती है। लिवर विफलता के अन्य कारण है हेपेटाइटिस ई, हेपेटाइटिस बी, ऑटो इम्यून लिवर रोग और विल्सन रोग आदि है। यह जानकारी लिवर रोग विशेषज्ञ डॉ. पीयूष उपाध्याय ने दी।
डा. उपाध्याय ने लोहिया संस्थान में आयोजित बच्चों और किशोरों में लिवर विफलता के निदान और प्रबंधन के लिए इंडियन सोसाइटी ऑफ पीडियाट्रिक गैस्ट्रोएंटरोलॉजी कार्यशाला में दी। लोहिया संस्थान के संस्थान के बाल्य हेपेटोलॉजिस्ट और गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट विभाग के डा. पीयूष उपाध्याय हेपेटोलॉजी और न्यूट्रिशन प्रथम आधिकारिक राष्ट्रीय दिशा निर्देशों के निर्माण में योगदान देने के लिए जाने जाते है। डॉ. पीयूष उपाध्याय दुनिया भर के उन 50 विशेषज्ञों में से हैं, जिन्होंने विशेषज्ञों के साथ लिवर के इलाज व प्रबधंन के लिए दिशानिर्देश विकसित किए।
डा. पीयूष का कहना है कि लिवर की विफलता के लक्षण एक आम आदमी के लिए भी पहचानना आसान है। जैसे यदि पीलिया या लिवर की क्षति से पीड़ित कोई बच्चा, किशोर या वयस्क सामान्य से अधिक या कम सोता है, सुस्त है, चिड़चिड़ापन है, उसे नींद से जगाना मुश्किल है, शरीर में अकड़न है, बेहोशी है तो इसका मतलब है कि पीलिया लिवर की विफलता की ओर बढ़ रहा है और तत्काल उसे चिकित्सीय देखभाल की आवश्यकता है।
डा. पीयूष ने बताया कि जब यकृत की कई कोशिकाएँ मर जाती हैं या थोड़े समय में बहुत क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। इससे यकृत ठीक से काम नहीं कर पाता। लिवर फेलियर के लक्षण पीलिया,आसानी से खून बहना,पेट में सूजन, तंद्रा/हल्की नींद,थकान, चिड़चिड़ापन, कोमा आदि है।
इसके अलावा लिवर फेलियर होने का कारणों में वायरल हेपेटाइटिस,हेपेटाइटिस ए (40-50प्रतिशत मामले), हेपेटाइटिस ई, हेपेटिस बी, ऑटो इम्यून लिवर रोग ,विल्सन रोग,पेरासिटामोल सहित दवाओं का ओवरडोज़,जहर,फैटी लीवर में वायरल संक्रमण आदि है। लोहिया संस्थान के निदेशक प्रो. सी.एम. सिंह ने कहा कि लिवर विफलता के प्रबंधन को मानकीकृत करने के लिए ऐसे दिशानिर्देश आज के समय की आवश्यकता हैं। दिशा निर्देशों का मानने से लिवर विफलता से होने वाली मृत्यु दर और रोग की दर में कमी आएगी।