लखनऊ। विश्व में प्रत्येक 40 सेकेंड में औसतन एक व्यक्ति लकवा से ग्रस्त हो जाता है। इसके अलावा प्रत्येक चार मिनट पर इससे वजह से एक व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। देश में लकवा भी मौत के बड़े कारणों में शामिल है, लेकिन थोड़ी सी सावधानी बरती जाए तो इस बीमारी से बचा जा सकता है। एसजीपीजीआई के न्यूरो विभाग के प्रमुख डा. सुनील प्रधान सहित अन्य विशेषज्ञ डा. पालीवाल और डा. विनीता मणि का एक मत से दावा है कि इस बीमारी से बचने के लिए दिनचर्या को दुरुस्त करना जरुरी है।
डा. प्रधान ने दावा किया कि मस्तिष्क लकवा (ब्रोन स्टोक) गोरे लोगों की अपेक्षा कालों को अधिक होती है। भारतीय द्वीप और अफ्रीका के निवासियों को यह बीमारी ज्यादा होती है जबकि यूरोपीय देशों में इस बीमारी से ग्रस्त लोगों की संख्या न के बराबर है। उन्होंने कहा, इन्सान तो इन्सान यह बीमारी भी नस्लभेद करती है। उन्होंने इसे विकलांगता का एक बड़ा कारण और मृत्यु का दूसरा सबसे प्रमुख कारण बताया।
उन्होंने कहा कि उच्च रक्तचाप, मधुमेह, ह्मदय से संबंधित बीमारियां, धूम्रपान, मदिरापान, धमिनियो में अत्यधिक वसा का होना, अनियमित दिनचर्या, व्यायाम की कमी, फल व हरी सब्जियों का सेवन न करने से लकवा होने की संभावना बहुत बढ़ जाती है। डा. प्रधान ने कहा कि देश में लकवा बहुत तेजी से बढ़ रहा है और इससे काफी लोग ग्रसित होते जा रहे हैं। यह एक महामारी का रुप ले रही है जिसका सबसे बड़ा कारण ब्लड शुगर और अनियंत्रित रक्तचाप है। वर्ष 2025 में आंकड़ों के अनुसार डायबिटीज से ग्रसित लोग सबसे ज्यादा भारत में होंगे।
लकवे से सम्बन्धित समस्त उपचार और थ्रॉम्बोलिसिस की सुविधा एसजीपीजीआई एमएस में उपलब्ध है। लकवे के मरीजों के इलाज के लिए 24 घंटे न्यूरोलॉजिस्ट उपलब्ध हैं।डा. प्रधान ने कहा कि विश्व पक्षाघात संगठन विकासशील देशों में लकवे के बढ़ते हुए दुष्प्रभाव के प्रति काफी संवेदनशील है। विश्व लकवा दिवस 29 अक्टूबर को लकवे की रोकथाम के प्रति जागरुकता बढ़ाने के लिए निर्धारित हुआ है। विश्व पक्षाघात संगठन के अनुसार जागरुकता और समय पर इलाज से लकवे से होने वाली विकलांगता व मृत्यु को कम किया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि एक हाथ या पैर में अचानक कमजोरी आना, बोलने में दिक्कत होना या बोली का अस्पष्ट होना, धुंधला दिखना या एक आंख से न दिखना, अचानक मूर्छित हो जाना, अचानक लड़खड़ाना या ठीक से न चल पाना आदि इसके लक्षण हैं। उनका कहना था कि स्ट्रोक के लक्षणों को जल्द पहचानने से व समय से उसका थ्राम्बोलिसिस सुविधा वाले अस्पताल पहुंचाने से मरीज का उपचार संभव है।
यह इंजेक्शन रक्त के थक्के को पिघलाकर मस्तिष्क में रक्त प्रवाह सुचारु करता है। लकवे की जांच के लिए केवल मस्तिष्क के सीटी स्कैन की जरुरत होती है। जल्द से जल्द लकवा पहचानकर उसकी जांच करके मरीज को इंजेक्शन का फायदा दिलाना है जिससे लकवे से होने वाली आजीवन विकलांगता व मृत्यु को कम किया जा सके। उनका कहना था कि इसका अटैक होने के एक घंटे के अन्दर चिकित्सा शुरु हो जानी चाहिए। डा. विनीता ने कहा कि साढ़े चार घंटे के अंदर मरीज का सीटी स्कैन हो जाने पर इलाज सटीक तरीके से किया जा सकता है। उनका दावा था कि इस बीमारी के अटैक के 24 घंटे तक इलाज शुरु करने के बारे में शोध किया जा रहा है।