दूसरे की बात को गलत समझना …

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अपनी ही बात को सही समझना और दूसरे की बात को गलत समझना भी एक मानसिक बीमारी है। इसका मुख्य कारण हीन भावना तथा व्यक्तित्व की समस्या का होना है। लगातार समाज में बढ़ता अपराध इसी का नतीजा है। यह कहना है इण्डियन साइकेट्रिक सोसाइटी के वाइस प्रेसिडेंट व हैदराबाद के संवेदना हॉस्पीटल एवं रिसर्च इंस्ट्टीयूट के डा.मृगेश वैण्णव का। वह शनिवार को विश्व स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर केजीएमयू के मानसिक रोग विभाग द्वारा गोमती नगर स्थित होटल में आयोजित इंडियन साइकेट्रिक सोसाइटी की बैठक को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने बताया कि लोगों में असफलता को सहन करने की क्षमता समाप्त होती जा रही है। इसका मुख्य कारण लोग का स्वकेंद्री हो जाना है। रिलेशन सिप में पार्किंग प्लेस कम होता जा रहा है।

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उन्होंने बताया कि मानसिक बीमारियों को लेकर समाज में गलत धारणा है। इसी वजह से लोगों के संबंध खराब होते है,यहां तक की घर टूट जाते है,लोग आत्महत्या तक कर लेते है। मौजूदा समय में आंकड़ों पर नजर डाले तो ४ में से १ आदमी मानसिक रूप से बीमार है। जिन्हें दवाओं की जरूरत है। लोगों को मानसिक बीमारियों के बारे में सचेत करना जरूरी है। उन्होंने बताया कि डिपे्रशन इस समय समाज की सबसे बड़ी समस्या है। महिलाओं की बात करे तों हर सात में से एक महिला डिप्रेशन की शिकार है,वहीं १५ में से १ व्यक्ति तथा स्कूल जाने वाले १० प्रतिशत बच्चे भी डिप्रेशन में हैं। डिप्रेशन के चलते बच्चों में जहां एकाग्रता का आभाव हो जाता हैं,वहीं पुरुषों में काम इच्छा ही समाप्त हो जाती है। जिसका सीधा असर पती-पत्नी के संबंधों पर पर पड़ता है। कुछ लोगों में तो डिप्रेशन की समस्या मोबाइल व शोशल मीडिया पैदा कर रहा है।

केजीएमयू के मानसिक रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डा.पीके.दलाल के मुताबिक मानसिक बीमारियां विश्व में अक्षमता पैदा करने वाली बीमारियों में प्रमुख स्थान रखती है। जिसका डिप्रेशन प्रमुख कारण है। केवल भारत में ही १० करोड़ लोग अपने पूरे जीवन काल में और करीब १३ करोड़ लोग इस समय मानसिक रोग से ग्रसित हैं। आज भी हमारे देश में इलाज के पहुंच की कमी बहुत ज्यादा है। एक आंकड़े के हिसाब से १० में से ९ मानसिक रोग से ग्रसित व्यक्तियों को इलाज नहीं मिल पा रहा है। २०१६ में किये गये नेशनल मेन्टल हेल्थ सर्वे में यह पता चला कि इलाज में पहुंच की कमी ८३ प्रतिशत है,जबकि मानसिक रोगों व नशे के रोगों के लिए इलाज की कमी ८६ प्रतिशत है।

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