लखनऊ। किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एमएलबी भट्ट ने शुक्रवार को मानसिक रोगविभाग के स्थापना दिवस पर प्रदेश की पहली क्लीनिक फॉर यूज ऑफ टेक्नोलॉजी (पीयूटी) क्लीनिक का शुभारंभ किया। यह क्लीनिक चार अप्रैल से शुरु होगी। प्रत्येक बृहस्पतिवार को ओपीडी में मरीज देखे जाएंगे। इस अोपीडी में बच्चों एवं किशोरों की काउंसलिंग कर इंटरनेट व टेक्नोलॉजी के एडिक्शन से छुटकारा दिलाएंगे। स्थापना दिवस में पीजीआईएमई आर चंडीगढ़ के मानसिक रोग विभागाध्यक्ष प्रो. देबाशीष बसु भी मौजूद थे।
समारोह में कुलपति ने कहा कि मानसिक रोग विभाग की सराहनीय पहल है। इस तरह की क्लीनिक पूरे प्रदेश में पहली बार खोली जा रही है।यहां बच्चों को ही नहीं उनके परिजनों की भी काउंसलिंग एंव साइकोथेरेपी से इंटरनेट और टेक्नोलॉजी की लत छुड़ाने और इसके प्रबंधन की सुविधा प्रदान दीजाएगी।
समारोह में विभागाध्यक्ष डॉ पीके दलाल ने विभाग की वार्षिक प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत करतेहुए गत वर्षो में विभाग द्वारा प्राप्त की गईं उपलब्धियों पर विस्तृत रूप से प्रकाश डाला। बताया कि विभाग के 11 संकाय सदस्यों के द्वारा 61 शोधपत्रों का प्रकाशनभी एक सराहनीय उपलब्धि है।
उन्होंने कहा कि लगभग पांच फीसदी आबादी टेक्नोलॉजी एडिक्शन की शिकार हो चुकी है। इसकी संख्या तेजी से बढ़ रही है। इसे रोकने के लिए टेक्नोलॉजी के सदुपयोग के प्रति लोगोंको जागरुक करना होगा।
डॉ. देबाशीष बसु ने बताया कि आनलाइन गेमिंग नशे से ज्यादा खतरनाक है। डब्ल्यूएचओ ने जून 2018 में ऑनलाइन गेमिंग को एक मानसिक विकार के रूप में मान्यता दी है। सोशल मीडिया के उपयोग को तेजी से नशे की लत के रूप में मान्यता दी जा रही है,क्योंकि लोग लगातार खबरों के लिए अपने स्मार्टफोन की जांच कर रहे है। कार्यस्थल पर ऑनलाइन खरीदारी साइटों को ब्रााउज कर रहेे हैं।
उन्होंने बताया कि इंटरनेट का उपयोग यदि लत के स्तर पर हो तो वह सामाजिक दायरे के घटने, अवसाद, अकेलापन, आत्मसम्मान की कमी और जीवन में असंतुष्टि,खराब मानसिक स्वास्थ्य और पारिवारिक कार्यों में गिरावट के साथ जुड़ा हुआ है। उन्होंने बताया कि आमने-सामने वाली बातचीत की कमी, व्यायाम में कमी, देर रात तक टेक्नोलॉजी का उपयोग करने से नींद की समस्याओं और तेजी से गतिहीन जीवनशैली को अपनाने एवं टेक्नोलॉजी की लत से न केवल मानसिक स्वास्थ्य बल्कि शारीरिक स्वास्थ्यभी प्रभावित हो रहा है।
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