बाजार से चादर लाकर बिछाते है यहां

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लखनऊ। किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय में तमाम दावों के बाद भी व्यवस्था सुधर नहीं रही है। आलम यह है कि कई विभागों में भर्ती मरीजों के बेड की चादरें नहीं बदली जा रही हैं। आलम यह है कि किसी विभाग में चादरें हैं तो गंदी हैं,तो कहीं चादरें ही नदारद हैं। मरीजों के तीमादार बदलने के लिए अनुरोध करते रहते है, लेकिन चादर नहीं मिल पाती है।
सबसे बुरा हाल आर्थोपेडिक विभाग का है। यहां पर तो मरीजों को चादरें ही नहीं मिल रही है। कुछ मरीज बिना चादरों के ही बिस्तर पर भर्ती हैं ,जबकि कुछ मरीज घर से लायी हुयी चादरों को बेड पर डालकर काम चला रहे हैं। ये हाल तब है जब केजीएमयू के जिम्मेदार अधिकारी सभी विभागों में मरीजों की रोजाना चादरें बदलवाने का दावा करते नहीं थकते।

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आर्थोपेडिक विभाग के मरीजों की माने तो कई बार तो बिना चादर बदले उसी बिस्तर पर दूसरे मरीज को भर्ती कर दिया जाता है, जिससे संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। गोंडा निवासी एक मरीज ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि दो दिन हो गया है वार्ड में भर्ती हुये अभी तक चादर नहीं मिली है। बाजार से चादर मंगा कर बेड पर डाली है। लेकिन जिम्मेदारों को इससे कोई मतलब नहीं दिखाई पड़ रहा है। जब इस संबंध में केजीएमयू प्रशासन के अधिकारियों से बात करने की कोशिश की,तो किसी भी जिम्मेदार ने बात करने से इंकार कर दिया। जानकारों की माने तो रोज सुबह वार्डो में भर्ती मरीजों की चादरें बदलने का नियम है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही नजर आ रही है। मरीज बिना चादरों के कटे-फटे गद्दों पर लेटने को मजबूर है।

सरकारी अस्पतालों में रंगीन चादरें डालने का नियम भी आया था। इसके तहत भर्ती मरीजों की रोजाना चादरें बदली जाये, जिसके लिए सरकार ने सप्ताह में अलग-अलग दिन बेड पर रंगीन चादरें डालने का नियम लागू किया था। उसकों भी केजीएमयू प्रशासन ने यह कहकर नकार दिया कि केजीएमयू मे बिस्तरों की सख्या ज्यादा हैं। यहां पर रोजाना अलग-अलग रंगीन चादरे बेड पर डालना संभव नहीं है। जिसके बाद से रोजाना सफेद रंग की चादरें डाली जाने की बात कही जाने लगी, लेकिन वह भी नहीं मिल पाती है।

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