गुस्सा इंसानी स्वभाव का हिस्सा है। लेकिन जब यह हद से गुजर जाता है, तो छोटी-सी बात को जिदगी हिला देने वाले अंजाम की कगार पर लाकर खड़ा कर देता है।
लोगों का गुस्सा हद से ज्यादा बढ़ रहा है और यह इंसानों के साथ-साथ इंसानी रिश्तों का भी खून कर रहा है।
गुस्सा आना है स्वाभाविक –
गुस्सा सभी को आता है। किसी को ज्यादा, किसी को कम। दिन में एक आधा बार गुस्सा आना नॉर्मल है। यदि यही गुस्सा ज्यादा आने लगे तो आप सतर्क को जाएं।
ऐसा होने पर हो जाएं सतर्क –
- यदि गुस्सा बार-बार आने लगे। ऐसा लगने लगे कि सभी आपको परेशान कर रहे हैं।
- गुस्सा देर तक रहे। गुस्सा चंद मिनटों के बजाए कई दिनों तक दिमाग में घुमड़ता रहे।
- गुस्से में कुछ भी तोड़ने-फोड़ने का मन करे।
- अपने शरीर को नुकसान पहुंचाने में भी गुरेज न हो।
याद रखें कि ऐसे वक्त में भी गुस्से को एकदम से मनोरोग से जोड़ना गलत है। सभी गुस्सैल लोग मानसिक रूप से बीमार हों, यह जरूरी नहीं है। हां, कुछ लोगों में गुस्सा बीमारी का रूप ले सकता है।
गुस्से को हम दो तरह से समझ सकते हैं –
पैसिव ऐंगर: आपमें ये लक्षण अगर हैं तो कहीं न कहीं मन में पैसिव ऐंगर होगा।
- दूसरों की पीठ पीछे बुराई करना, आई कॉन्टैक्ट से बचना, दूसरों को नीचा दिखाने की कोशिश करना।
- खुद साइडलाइन होकर दूसरों को किसी के खिलाफ उकसाना, झूठे आंसू बहाना, अपने नेगेटिव विचार किसी शख्स के जरिये अपने दुश्मन तक पहुंचाना।
- खुद को हरदम दोषी मानना, बिना बात के बार-बार माफी मांगना।
- अविश्सनीय लोगों पर निर्भर होना, छोटी-छोटी बातों पर नाराज होना और महत्वपूर्ण चीजों को नजरंदाज कर देना, सेक्सुअली कमजोर होना।
- तमाम तरह के ऑब्सेसिव डिस्ऑर्डर। मसलन सफाई को लेकर कुछ ज्यादा चितित रहना, सभी से परफ़ेक्शन की उम्मीद रखना, बार-बार चीजों को चेक करना और छोटी-छोटी बातों पर वहम करना।
- परेशानी की हालत में पीठ दिखा देना, बहस जैसी स्थितियों से दूर भागना।
अग्रेसिव ऐंगर –
- दूसरों को धमकाना, छींटाकशी करना, मुक्का दिखाना, ऐसे कपड़ों और सिबल का यूज करना जिनसे गुस्से का इजहार होता है, तेज आवाज में कार का हॉर्न बजाना।
- दूसरों पर फिजिकल अटैक करना, गालियां देना, अश्लील जोक सुनाना, दूसरों की भावनाओं की परवाह न करना, बिना किसी गलती के दूसरों को सजा देना।
- सामान तोड़ना, जानवरों को नुकसान पहुंचाना, दो लोगों के बीच के रिश्ते खराब कर देना, गलत तरीके से ड्राइव करना, चीखना-चिल्लाना, दूसरों की कमजोरी के साथ खेलना, अपनी गलती का दोषारोपण दूसरों पर करना।
- जल्दी-जल्दी बोलना, जल्दी-जल्दी चलना, ज्यादा काम करना और दूसरों से ऐसी उम्मीद रखना कि वे भी ऐसा ही करें।
- दिखावा करना, हर वक्त लोगों की अटेंशन चाहना, दूसरों की जरूरतों को नजरंदाज कर देना, लाइन जंप करना।
- पुरानी बुरी यादों को हर वक्त याद करते रहना, दूसरों को माफ न कर पाना।
गुस्से का मेकनिज्म –
जब किसी शख्स को गुस्सा आने वाला होता है, तो उसके हाथ-पैरों में खून का बहाव तेज हो जाता है, दिल की धड़कनें बढ़ जाती हैं, एड्रिनलिन हॉर्मोन तेजी से रिलीज होता है और बॉडी को इस बात के लिए तैयार कर देता है कि वह कोई ताकत से भरा एक्शन ले। इसके बाद गुस्सा व्यक्ति को धीरे-धीरे अपनी गिरफ्त में लेने लगता है, जिसकी वजह से शरीर में कुछ और केमिकल रिलीज होते हैं, जो कुछ पलों के लिए बॉडी को एनर्जी से भर देते हैं। दूसरी तरफ नर्वस सिस्टम में कॉर्टिसोल समेत कुछ और केमिकल निकलते हैं। ये केमिकल शरीर और दिमाग को कुछ पलों के लिए नहीं, बल्कि लंबे समय तक प्रभावित करते हैं। ये दिमाग को उत्तेजित अवस्था में रखते हैं, जिससे दिमाग में विचारों का प्रवाह बेचैनी के साथ और बेहद तेज स्पीड से होने लगता है।
बेकाबू गुस्से की वजहें –
- धैर्य की कमी
- सब कुछ अभी यहीं, तुरंत की चाह
- कॉम्पिटिशन में सब कुछ पा लेने की इच्छा
- हमेशा खुद को आर्थिक तंगी से गुजरता हुआ ही महसूस करना
- लोगों के काम को लेकर काफी असंतोष
- इमोशनल सपोर्ट सिस्टम का न होना
- अटैचमेंट की कमी
- टीवी, मोबाइल से लेकर विडियो तक में हर जगह हिसा से सामना
गुस्से का इंसानी शरीर पर कुछ ऐसा पड़ता है असर –
- बॉडी में एड्रिनलिन और नोराड्रिनलिन हॉर्मोंस का लेवल बढ़ जाता है।
- हाई ब्लड प्रेशर, सीने में दर्द, तेज सिर दर्द, माइग्रेन, एसिडिटी जैसी कई शारीरिक बीमारियां हो सकती हैं।
- जो लोग जल्दी-जल्दी और छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा हो जाते हैं, उन्हें स्ट्रोक, किडनी फेल्योर और मोटापा होने के चांस रहते हैं।
- ऐसा माना जाता है कि गुस्से में इंसान ज्यादा खाता है, जिसका रिजल्ट होता है मोटापा।
- ज्यादा पसीना आना, अल्सर और अपच जैसी शिकायतें भी गुस्से की वजह से हो सकती हैं।
- ज्यादा गुस्से की वजह से दिल की ब्लड को पंप करने की क्षमता में कमी आती है और इसकी वजह से हार्ट मसल्स डैमेज होने लगती हैं। इससे हार्ट अटैक होने की आशंका बढ़ जाती है।
- लगातार गुस्से से रैशेज, मुंहासे जैसी स्किन से जुड़ी बीमारियां हो सकती हैं।
गुस्से को किया जा सकता है नियंत्रित –
हम गुस्से को नियंत्रित नहीं कर सकते हैं। यह धारणा बिलकुल गलत है। गुस्से को दबाना या फिर नजरअंदाज करना हानिकारक साबित हो सकता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप चिल्लाने लगें, मारपीट करें, चीजें तोड़ें। आप अपने गुस्से को नियंत्रित करने के लिए उस समय उस जगह से हट जाएं। हो सके तो उस काम में अपना ध्यान लगाने की कोशिश करें, जो आपको पसंद है, मिसाल के तौर पर म्यूजिक या राइटिग आदि।