महामारी के कारण अस्पताल जाने के बजाय मरीजों ने थेरेपी ऑन डिमांड का तरीका अपनाया
न्यूज। स्वास्थ्य सेवा से जुड़े लोगों का पूरा ध्यान, सभी संसाधन एवं इन्फ्रास्ट्रक्चर तेजी से कोविड-19 के मरीजों की देखरेख करने में लगे हैं, जिस कारण से कोविड के अलावा अन्य बीमारियां हीमोफीलिया आदि के मरीजों पर ध्यान कम हुआ है। मरीजों के बीच बीमारी के बारे में कम जागरूकता और विशेषज्ञों तक पर्याप्त पहुंच पा रहे है। हीमोफीलिया मरीजों की स्थिति और परेशानी बन रही है।
हीमोफीलिया के मरीजों में कोरोना का संक्रमण गंभीर होने का खतरा रहता है, कोरोना काल में हीमोफीलिया के मरीजों के लिए इलाज पाना और कठिन हो गया है, क्योंकि उनमें कोरोना वायरस के संक्रमण होने का खतरा बना रहता है। हीमोफीलिया के इलाज के लिए जरूरी फैक्टर अस्पताल में उपलब्ध हैं, लेकिन कोरोना महामारी के कारण मरीज इलाज के लिए अस्पताल जाने में डर रहे हैं। हीमोफीलिया के मरीज सामान्य जीवन जी सकें, इसके लिए समय पर जांच, पर्याप्त इलाज और फिजियोथेरेपी बहुत जरूरी है।
पीजीआई की मेडिकल जेनेटिक्स विभाग की प्रमुख प्रो. डॉ. शुभा फड़के का कहना है कि हीमोफीलिया के इलाज के लिए कोरोना महामारी के मौजूदा हालात में अस्पताल आने वाले हीमोफीलिया मरीजों की संख्या कम हुई है। फिर भी सामाजिक कार्यकर्ताओं की मदद से हम इस दौर में भी इलाज करने की कोशिश करते रहते हैं। ब्लीडिंग के कई मामले अस्पताल में भर्ती होकर ही ठीक हो पाते हैं। कई मरीजों ने सेल्फ इंफ्यूजन भी सीख लिया है। लेकिन कोरोना के इस समय में प्रोफिलेक्सिस या कम से कम होम थेरेपी की जरूरत बढ़ गई है। एक अन्य विशेषज्ञ डॉ. नीता राधाकृष्णन ने कहा, ‘हम हीमोफीलिया के मरीजों और उनके परिजनों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं और उन्हें पर्याप्त इलाज पाने में मदद कर रहे है।
हीमोफीलिया क्या है?
हीमोफीलिया खून से जुड़ा एक आनुवंशिक जेनेटिक विकार है, जिसमें शरीर में खून का थक्का जमने की क्षमता खत्म हो जाती है। इस दुर्लभ बीमारी के शिकार व्यक्ति में खून सामान्य लोगों की तुलना में तेजी से नहीं बहता है, लेकिन ज्यादा देर तक बहता रहता है। उनके खून में थक्का जमाने वाले कारक (क्लोटिंग फैक्टर) पर्याप्त नहीं होते हैं। क्लोटिंग फैक्टर खून में पाया जाने वाला एक प्रोटीन है, जो चोट लगने की स्थिति में खून को बहने से रोकता है। यह एक गंभीर बीमारी है, जिसमें ज्यादा खून बहने के कारण मरीज की जान भी जा सकती है। हीमोफीलिया प्रायः दो प्रकार का होता है, पहला हीमोफीलिया ए और दूसरा हीमोफीलिया बी। हीमोफीलिया का सबसे सामान्य प्रकार हीमोफीलिया ए है। इस बीमारी में मरीज के शरीर में क्लोटिंग फैक्टर-8 पर्याप्त नहीं होता है। वहीं हीमोफीलिया बी के मरीज ज्यादा नहीं पाए जाते। इसके मरीजों में फैक्टर-9 की पर्याप्त मात्रा नहीं होती है। हालांकि परिणाम दोनों ही स्थितियों में एक जैसा होता है और मरीज में चोट लगने की स्थिति में खून सामान्य से ज्यादा समय तक बहता रहता है।