लखनऊ। हाल ही में किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि कोविड-19 के प्रकोप को नियंत्रित करने के लिए लगाए गए प्रतिबंधों के कारण लगभग 18 लाख 50 हजार महिलाएं चाहते हुए भी गर्भपात नहीं करा पायी। गर्भपात नहीं करा पाने के कईं कारण थे, जिनमें सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की सुविधाएं तथा दवाई की दुकानें आदि शामिल हैं।
इपस डिवेलपमेंट फाउंडेशन के एक अध्ययन में पाया गया कि जैसे ही कोविड-19 महामारी में बदल गया, हर किसी का पूरा ध्यान और प्रयास वायरस के नियंत्रण में लग गया, जिससे क्लीनिकल क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण सुविधाएं बंद हो गयी, जिसमें सुरक्षित गर्भपात भी सम्मिलित है। अधिकांश सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाएं और उनके कर्मचारियों का ध्यान पूरी तरह से कोविड-19 के उपचार पर केंद्रित हो गया, और निजी स्वास्थ्य सुविधाएं बंद होने से वहां गर्भपात कराने संभव नहीं था।
अध्ययन लॉकडाउन शुरू होने के पहले तीन महीनों (25 मार्च से 24 जून 2020) में भारत में गर्भपात की पहुंच पर कोविड-19 के निकटवर्ती प्रभाव का आकलन करता है। डॉ. सुशांता कुमार का कहना है कि टेलिफोनिक सर्वे किया और एफओजीएसआई नेतृत्व और सामाजिक विपणन संगठनों जैसे पीएसआई इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के कईं विशेषज्ञों के साथ परामर्श किया। उनसे प्राप्त आंकड़ों के आधार पर निष्कर्ष निकाला है कि 39 लाख गर्भपात जो तीन महीने में हुए होते, कोविड-19 के कारण उनमें से 18 लाख 50 हजार नहीं हो पाए।
अध्ययन का अनुमान है कि लॉकडाउन 1 और 2 (25 मार्च से 3 मई) के दौरान सुरक्षित गर्भपात कराने की सुविधा सर्वाधिक प्रभावित हुई, जिससे जो महिलाएं गर्भपात कराना चाहती थीं, उनमें से 59 प्रतिशत महिलाओं तक इस सेवा की पहुंच संभव नहीं हो सकी। हालांकि, अनलॉक के पहले चरण या रिकवरी अवधि के साथ, जैसा कि एक जून से शुरू वाले अध्ययन में उल्लेखित किया गया है, स्थिति में सुधार की उम्मीद है। क्योंकि, इन 24 दिनों में जो गर्भपात नहीं हो पाए, उनका प्रतिशत घटकर 33 हो गया है।
लॉकडाउन के दौरान बड़ी संख्या में महिलाएं सुरक्षित गर्भपात सेवाओं तक नहीं पहुंच सकी, इसलिए यह बेहद जरूरी है कि सार्वजनिक और निजी दोनों स्वास्थ्य सेवाएं, इन महिलाओं की जरूरतों को पूरा करने के लिए तैयार हों। प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए कुछ प्रारंभिक सिफारिशें जारी की हैं जिनमें शामिल हैं: पहली और दूसरी तिमाही के लिए सुविधाओं का तेजी से मानचित्रण, विशेषरूप से दूसरी तिमाही में गर्भपात के लिए तैयारियों का आकलन करना। सेवाओं की उपलब्धता के बारे में जानकारी का प्रसार करना, चिकित्सीय गर्भपात के लिए उपयुक्त दवाईयों की आपूर्ति श्रृंखला को व्यवस्थित करना, और अंत में किफायदी दामों पर अतिरिक्त यात्राओं की व्यवस्था करना।
इस अध्ययन का सबसे महत्वपूर्ण भाग यह नहीं है कि 18 लाख 50 हजार महिलाएं और लड़कियों को जिन्हें गर्भपात की आवश्यकता थी, वे पिछले तीन महीनों में इस सुविधा को प्राप्त नहीं कर सकीं। इन 18 लाख 50 हजार महिलाओं में से कईं महिलाएं दूसरी तिमाही में गर्भपात के लिए सार्वजनिक और निजी अस्पतालों में आएंगी, और हमें दूसरी बार उन्हें वापस नहीं लौटाना चाहिए।