लखनऊ। खेल के दौरान लगने वाली चोट को अक्सर खिलाड़ी को नजरअंदाज न कर देते है। 30 से 40 प्रतिशत खिलाड़ चोट को हल्की समझ कर खेलते रहते हैं। ऐसे में इंजरी के स्थान पर प्लास्टर चढ़ाने या फिर सर्जरी तक करानी पड़ सकती है। यह बात किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के फिजिकल मेडिसिन एंड रिहैब्लिटेशन विभाग (पीएमआर) विभाग के प्रमुख डॉ. अनिल गुप्ता रविवार को केजीएमयू के लिम्ब सेंटर में विभाग के प्रेक्षागृह में आर्थोटिक मैनेजमेंट ऑफ स्पोर्टस रिलेटेड इंजरी पर आयोजित कान्फ्रेंस को संबोधित कर रहे थे।
यह ऑर्थोटिक प्रोस्थेटिक एसोसिएशन ऑफ इंडिया की यूपी शाखा की तरफ से कान्फ्रेंस में डॉ. अनिल गुप्ता ने कहा कि खिलाड़ियों को जर्क, मांसपेशियों की खिचांव या चोट सबसे ज्यादा लगती है। इनमें खास कर लिगामेंट इंजरी बहुत कॉमन होती जा रही है। आमतौर पर खिलाड़ी मांसपेशियों का हल्का खिंचाव य हल्के -फुल्के दर्द को गंभीरता से नहीं लेते हैं। सामान्य दवाओं का सेवन करके विशेषज्ञ से जांच नहीं कराते है, ऐसी दशा में चोट गंभीर रूप ले लेती है।
कन्फ्रेंस के आयोजक सचिव अरविन्द कुमार निगम ने बताया कि रूटीन में लगने वाली सामान्य चोट के लिए हल्के उपकरण उपलब्ध हैं। विशेषज्ञ से जांच के बाद परामर्श पर इन उपकरणों का प्रयोग किया जा सकता है। इन उपकरणों के प्रयोग से लगभग एक महीने में ही खिलाड़ी चोट व उसके दर्द से निदान पा सकते हैं। अब नये – नये उपकरण भी बाजार में आ रहे है। इनका प्रयोग अलग- अलग होता है। उन्होंने बताया कि स्पाइन, एंकल ( टेढ़ी) टेनिस एल्बो, कोहनी, घुटना आदि अंगों की चोट में समय पर सही इलाज करा कर सर्जरी व प्लास्टर से बच सकते हैं।
प्रोस्थेटिक ऑर्थोटिक विशेषज्ञ शगुन सिंह ने बताया कि चोट लगने पर यदि मरीज को उपकरण पहनने के दौरान कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए। इनमें उपकरण पहनने पर आरामदायक न हो आैर त्वचा में लालपन होने लगे तो तत्काल परामर्श लेना चाहिए। टीम के साथ फार्मासिस्ट व फिजियोथेरेपिस्ट के साथ प्रोस्थेटिक ऑर्थोटिक्स विशेषज्ञ की तैनाती होने चाहिए। ताकि सामान्य सी लगनी वाली चोट का प्रबंध आसानी से हो सके।
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