व्यस्त सड़क किनारे घर है तो बच्चें को इस बीमारी का खतरा

0
867
Photo Credit: cocukvegenc.com

डेस्क। शहरी चका -चौध आैर शोर शराबे के शौकीन लोग अकसर सड़क के आसपास अपना घर बनाने का सपना देखते हैं, आैर बहुत से लोग सपना साकार भी कर लेते है, लेकिन ऐसे लोगों को थोड़ा चौकन्ना होने की जरूरत है, क्योंकि ऐसी जगहों पर रहने वालों के बच्चों में ऑटिज्म होने का खतरा दो- गुना तक बढ सकता है। एक शोध में यह आश्चर्यजनक बात सामने आई है।

Advertisement

ऑटिज्म अर्थात स्वलीनता एक ऐसी बीमारी है, जिसके शिकार बच्चे अपने आप में खोए रहते हैं, उन्हें दुनिया की कोई खबर नहीं रहती। वह सामाजिक रूप से अलग- थलग रहते हैं, किसी से घुलते मिलते नहीं आैर बात करने से भी हिचकते हैं। ऐसे बच्चों को पढने लिखने में समस्या होती है आैर उनके दिमाग आैर हाथ पैर के बीच तालमेल नहीं बन पाता, जिससे उनका शरीर किसी घटना पर प्रतिक्रिया नहीं दे पाता।

इस बीमारी के कारणों का पता लगाने के लिए दुनियाभर में तरह तरह के शोध आैर अध्ययन चल रहे है। एक नए शोध व अध्ययन में यह बात सामने आई है कि व्यस्त सड़कों के आसपास जन्म लेने वाले बच्चों में ऑटिज्म का खतरा शांत आैर प्रदूषण रहित इलाकों में जन्म लेने वाले बच्चों की तुलना में दो- गुना तक बढ जाता है। शोधकर्ताओं के अनुसार भीड़-भाड़ वाली सड़कों पर कई गाड़ियां आती-जाती हैं। गर्भवती महिलाएं इनसे निकलने वाले धुएं के संपर्क में आती हैं जो गर्भ में पल रहे शिशु के मस्?तिष्?क पर काफी बुरा असर डालता है। इसके चलते उनके पैदाइश के पहले वर्ष के दौरान ऑटिज्म होने की आशंका बढ जाती कैलिफोर्निया के वैज्ञानिकों ने इसके लिए ऑटिज्म के शिकार 279 बच्चों आैर 245 स्वस्थ बच्चों की उम्र आैर उनके पारिवारिक परिवेश की तुलना कर अध्ययन किया। यातायात प्रदूषण वाले क्षेत्र के घरों में रहने वाले बच्चों में ऑटिज्म होने की आशंका बहुत अधिक जाती है।

मालूम हो कि 100 में से एक बच्चा जन्म के शुरुआती वर्ष में ऑटिज्म की चपेट में आता है, लेकिन इस बीमारी के लक्षण दूसरे वर्ष में नजर आने शुरू होते हैं। इस बीमारी से ग्रसित बच्चे दूसरों के साथ आसानी से संवाद नहीं कर पाते। वैज्ञानिक यातायात प्रदूषण आैर ऑटिज्म के बीच संबंधों की संभावना लंबे समय से तलाश कर रहे हैं। उनका कहना है कि वे इस दिशा में आगे बढ रहे हैं। शोधकर्ता अपने इस काम को बेहद महत्त्वपूर्ण मान रहे हैं। उनका कहना है कि यह बात तो हम लंबे वक्?त से जानते थे कि वायु प्रदूषण हमारे फेफड़ों आैर विशेष कर बच्चों के लिए खतरनाक है। अब हम वायु प्रदूषण के दिमाग पर असर को लेकर आगे अध्ययन कर रहे हैं। ये निष्कर्ष आर्काईव्स ऑफ जनरल साइकाइट्री नाम की पत्रिका में प्रकाशित हुआ था।

इसी तरह के एक अन्य अध्ययन से यह निष्कर्ष निकला कि माता पिता की उम्र में यदि अधिक अंतर हो या वह दोनो कम उम्र हों तो बच्?चों के ऑटिज्?म की चपेट में आने का जोखिम बढ जाता है। न्यूयार्क के माउंट सिनाई स्थित इकान स्कूल ऑफ मेडिसिन द्वारा किये गये अध्ययन के अनुसार माता पिता की उम्र में अधिक अंतर होने से उनके बच्चों में ऑटिज्म का खतरा अधिक होता है। माता- पिता के बीच यदि 10 साल या इससे ज्यादा का अंतर हो तो उनके बच्चों में ‘ऑटिज्म” का खतरा अधिक होता है। इस अध्ययन के तहत पांच देशों में 57 लाख बच्चों को शामिल किया गया। इसमें उम्रदराज माता-पिता आैर किशोर माता-पिता के बच्चों में ऑटिज्म का ज्यादा खतरा पाया गया।

शोधकर्ताओं के मुताबिक 50 साल से अधिक उम्र के पिता से जन्मे बच्चों में ऑटिज्म की दर 66 फीसदी अधिक पाई गई, जबकि 20 से 30 साल के पिता के बच्चों की तुलना में 40 से 50 साल के पिता के बच्चों में 28 फीसदी अधिक पाई गई। उन्होंने यह भी पाया कि 20 से 30 साल के बीच की माताओं की तुलना में किशोर माताओं से जन्मे बच्चों में ऑटिज्म की दर 18 प्रतिशत अधिक मिली।

20 से 30 साल की उम्र वाली माताओं की तुलना में 40 से 50 साल के बीच की उम्र की माताओं से जन्मे बच्चों में ऑटिज्म की दर 15 फीसदी अधिक रही। अध्ययन में यह भी पाया गया कि माता पिता की उम्र में अंतर बढने के साथ साथ ऑटिज्म की दर में भी वृद्धि पाई गई। 35 से 44 साल के पिता में आैर माता पिता के उम्र अंतराल में 10 साल या इससे अधिक अंतर होने पर इसकी दर सर्वाधिक है। वहीं, 50 साल से अधिक के पिता से जन्मे बच्चों में यह जोखिम अधिक है। यह अध्ययन मोल्यूकुलर साइकेट्री जर्नल में प्रकाशित हुआ।

एक अन्य अध्ययन में दावा किया गया है कि ऑटिज्म पीड़ित बच्चे जब अपने आसपास की चीजों को देखते हैं, तो उनका दिमाग आपस में तालमेल नहीं बिठा पाता। इस स्थिति में उन्हें ठीक वैसा अहसास होता है, जैसे बुरे ढंग से डबिंग की गई किसी फिल्म को देखने पर आम इनसान को होता है। ऐसे में बच्चे अपनी आंख ओर कान का इस्तेमाल कर आसपास की घटनाओं को जोड़ने का प्रयास करते हैं। ‘वेंडर बिल्ट ब्रोन इंस्टीट्यूट’ के शोधकर्ताओं ने इस नयी खोज को बहुत अहम माना है आैर उन्हें उम्मीद है कि इससे ऑटिज्म के लिए नये इलाज ढूंढने में मदद मिलेगी।

शोधकर्ताओं का मानना है कि अगर शुरुआती दौर में ही बच्चों की संवेदक कार्यक्षमता को दुरुस्त किया जा सके तो उनके बातचीत करने के तरीकों को सुधारा जा सकता है। यह अपनी तरह का पहला अध्ययन है जो इस ओर इशारा करता है कि संवदेक गतिविधियों में रुकावट आने पर ऑटिज्म पीड़ित बच्चों के बातचीत करने का तरीका प्रभावित होता है। शोधकर्ताओं ने 6 से 18 वर्ष तक की आयु के बच्चों पर अध्ययन किया।

ऑटिज्म पीड़ित बच्चों आैर सामान्य रूप से बढने वाले बच्चों की तुलना के दौरान दोनों समूहों के बच्चों को कंप्यूटर पर अलग-अलग तरह के टास्क दिए गए। शोधकर्ताओं ने पाया कि ऑटिज्म पीड़ित बच्चों को आवाज आैर वीडियो के बीच सामंजस्य बिठाने में दिक्कत हुई जिससे वह टास्क में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सके। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 18 दिसंबर 2007 को एक प्रस्ताव पारित कर 2 अप्रैल को विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया। इस आशय का प्रस्ताव कतर ने पेश किया था। इस दिन दुनियाभर में प्रमुख इमारतों पर नीली रौशनी की जाती है आैर इस मानसिक विकार से पीड़ित लोगों को दिल से अपनाने आैर उनमें मौजूद हुनर को निखारने में उनकी मदद करने का आह्वान किया जाता है।

अब PayTM के जरिए भी द एम्पल न्यूज़ की मदद कर सकते हैं. मोबाइल नंबर 9140014727 पर पेटीएम करें.
द एम्पल न्यूज़ डॉट कॉम को छोटी-सी सहयोग राशि देकर इसके संचालन में मदद करें: Rs 200 > Rs 500 > Rs 1000 > Rs 2000 > Rs 5000 > Rs 10000.

Previous articleयहां जल्द शुरु होगी रोबोटिक सर्जरी
Next articleदवा व्यवसायियों की समस्याओं का इससे होगा निदान

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here