लखनऊ। केजीएमयू स्थित ट्रामा सेंटर में भर्ती गम्भीर रूप से बीमार मरीजों को एमआरआई कराना मंहगा पड़ सकता है। जब इन मरीजों को ट्रामा सेंटर से एमआरआई कराने के लिए भेजा जाता है,इस दौरान कई मरीज ऐसे होते हैं,जो सांस भी आक्सीजन सिलेंडर के सहारे ले रहे होते हैं। जब इन मरीजों को स्ट्रेचर पर ले जाया जाता है,तो इनके साथ ट्रामा का कोई भी तकनीकी रूप से सक्षम कर्मचारी नहीं होता,बल्कि मरीजों के परिजन ही इन्हें ५०० मीटर दूर बने एमआरआई सेंटर तक ले जाते हैं,ऐसे में जरा सी चूक मरीजों के जान पर आफत बन सकती है।
जानकारों की माने तो सैंकड़ों कर्मचारी ट्रामा में काम करते हैं,लेकिन मरीजों के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाने को ट्रामा प्रशासन जिम्मेदार नजर नहीं आता। इतना ही नहीं कुछ मरीज ऐसे भी होते हैं। जिन्हें न तो स्ट्रेचर मिलती है और न ही व्हील चेयर उन मरीजों को उनके परिजन कंधों पर लाद कर एमआरआई सेंटर तक ले जाते हैं,वहीं एमआरआई सेंटर में नम्बर लगाने के बाद मरीज को बाहर जमीन पर लिटाने के लिए मजबूर दिखाई पड़ते हैं।
हरदोर्ई निवासी राजेश अपने भाई का इलाज ट्रामा में करा रहे हैं। राजेश ने बताया कि उनके भाई को सांस लेने में दिक्कत है,इसके कारण उसे ऑक्सीजन भी लगा रहता है। लेकिन जब एमआरआई कराने गये तो ट्रामा से खुद ही स्ट्रेचर व ऑक्सीजन सिलेंडर खींच कर ले जाना पड़ा। इतना ही नहीं लखनऊ निवासी सुनील अपने १४ वर्षीय बेटे को बुखार होने पर ट्रामा सेंटर में भर्ती कराया था,लेकिन आराम न मिलने पर डाक्टर ने एमआरआई कराने को कहा।
लेकिन ट्रामा से एमआरआई सेंटर लाने के लिए न तो स्ट्रेचर मिला और न ही एम्बुलेंस ऐसे में बच्चे को गोद में ही लाना पड़ा। वहीं जब सुनील को एमआरआई सेंटर पर जांच कराने के लिए नम्बर लगाने के बाद अपने बच्चे को बाहर जमीन पर लिटाना पड़ा। केजीएमयू में इस तरह की घटना आम हैं अभी कुछ दिन पहले जब ट्रामा से गम्भीर रूप से बीमार बच्चों को जब बाल रोग विभाग में शिफ्ट किया गया था,तो उन बच्चों को भी स्ट्रेचर व एम्बुलेंस से न ले जाकर पैदल ही ले जाया गया था।