लखनऊ । राजधानी होने के बाद भी यहां के सरकारी अस्पतालों में नवजात शिशुओं के उच्चस्तरीय इलाज की चिकित्सा व्यवस्था अभी भी वेंटिलेटर पर है। वीआईपी अस्पताल कहे जाने वाले सिविल अस्पताल में चार वर्षो में वेटिलेटर तो दूर सेंट्रल आक्सीजन प्लांट नहीं लग पाता है, तो बलरामपुर अस्पताल में नियोनेटल केयर यूनिट ही नही है। कहने को तो गोमती नगर के डा. राम मनोहर लोहिया अस्पताल में तीस बिस्तरों का बाल रोग विभाग है, लेकिन गंभीर बीमार शिशुओं के लिए एक मात्र किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय का बाल रोग की रेफर कर दिया जाता है, जहां पर शिशु वेंटिग में रहता है आैर उसकी जान एम्बुबैग पर टिकी रहती है।
प्रदेश का सबसे बड़ा रेफरल अस्पताल कहे जाने वाले बलरामपुर अस्पताल में बाल रोग विभाग बदहाल है कि यहां पर मात्र चार बाल रोग विशेषज्ञ डाक्टरों में एक डाक्टर का तबादला हो गया है, जब कि एक बाल रोग विशेषज्ञ डाक्टर एंटी रैबीज का टीका लगाने का काम भी करता है। इसके अलावा एक शेष बचे बाल रोग विशेषज्ञ डाक्टर भी कभी वीआईपी ड्यूटी या ओपीडी तथा इमरजेंसी ड्यूटी में रहता है। यहां पर नियोनेटल केयर यूनिट में उपकरण निष्क्रिय है। यहां पर गंभीर नवजात शिशुओं के आने पर बगल स्थित डफरिन अस्पताल या केजीएमयू रेफर कर दिया जाता है, पर यहां पर अस्पताल के नवजात शिशुओं से यूनिट फुल रहता है।
उधर सिविल अस्पताल में पिछले चार वर्षो से बाल रोग विभाग में अभी तक वेंटिलेटर नही लग पाया है। इसके संचालन के लिए अभी तक आक्सीजन प्लंाट नहीं लग पाया है। अस्पताल प्रशासन सीएमसीडी को खरीदने के लिए कहता है तो वहां से अस्पताल प्रशासन द्वारा ई टेंडर करके खरीदने के लिए कहा जाता है। ऐसे में अभी तक यहां पर गंभीर शिशुओं के इलाज के लिए वेंटिलेटर नहीं लग पाया है। वहीं लोहिया अस्पताल में तो तीस बिस्तरों के अलावा बाल रोग विशेषज्ञों की टीम लगी है।