लखनऊ। हर साल ब्लड प्रेशर की जांच कम से कम एक बार जरूर करवानी चाहिए। इसी प्रकार आंखों की जांच जरूरी है। जिन परिवार की हिस्ट्री में ग्लूकोमा हो गया, उनको सजग रहना चाहिए। इनको साल में दो बार जांच करनी चाहिए, क्योंकि ग्लूकोमा का लक्षण प्राथमिक स्टेज पर नहीं चलता है। बीमारी बढ़ने पर ऑप्टिकल नस खराब होनी की आशंका रहती है। लापरवाही से नस पूरी तरह खराब होने पर उसका उपचार करना मुश्किल है। ऐसी स्थिति में आंखों की रोशनी जा सकती है। यह बात सुपर स्पेशियलिटी आई सेन्टर के डा. समर्थ अग्रवाल ने शनिवार को आईएमए भवन में आयोजित प्रेस वार्ता में कही।
उन्होंने बताया कि वल्र्ड ग्लूकोमा एसोसिएशन प्रतिवर्ष 12 से 18 मार्च तक ग्लूकोमा सप्ताह मनाता है, इससे लोगों में जागरूकता बढ़े। ग्लूकोमा को काला मोतिया आंखों की बीमारी का समूह है जो आंखों की नस को खराब कर देता है। शुरु की अवस्था में काला मोतिया के कुछ या कोई भी लक्षण नहीं दिखते आैर धीरे-धीरे बिना चेतावनी दृष्टि छिन जाती है। काला मोतिया का सबसे बड़ा कारण होता है, आंखों के अंदरूनी दबाब में वृद्धि। एक स्वस्थ आख से द्रव्य निकलता है, जिसे एक्वुअस ह्यूमर कहते हैं। जब इसे निकलने वाली प्रणाली में रुकावट आ जाती है आैर द्रव्य सामान्य गति से बाहर नहीं निकल पाता।
उन्होंने कहा कि आमतौर पर लोग चश्मे वाली दुकान पर आंखों की जांच करवाकर नये चश्मे का नम्बर लेते हैं, लेकिन आंखों के प्रेशर की जांच नहीं करवाते हैं, जिससे ग्लूकोमा के लक्षण का पता नहीं चलता है। नेत्र रोग के विशेषज्ञ चिकित्सक से जांच करवाने के बाद नहीं चश्मा का नम्बर लेना चाहिए। इस मौके पर नेत्र रोग चिकित्सक डा. आरती एलेहेन्स आैर आईएमए के अध्यक्ष डा. पीके गुप्ता पर ग्लूकोमा पर विस्तार से प्रकाश डाला। वहीं दूसरी तरफ नि:शुल्क चिकित्सा शिविर में पचास से अधिक मरीजों ने जांच करवायी।
किनको ज्यादा खतरा –
- जिनके परिवार में किसी को काला मोतिया हो
- 40 वर्ष से अधिक आयु के लोग
- मधुमेह से पीड़ित लोग
- जिन लोगों ने काफी समय तक स्टीरॉइड लिए हो
- जिन लोगों की आंखों में चोट लगी हो