लोहिया संस्थान: इस तकनीक से आसान होगा स्पाइन बोन का टेढ़ापन दूर करना

0
419

लखनऊ। स्पाइन बोन (रीढ़ की हड्डी) के टेढ़ेपन के इलाज में परेशानी कम होगी। स्पाइन बोन सीधा करने के लिए सर्जरी के दौरान पीठ में लंबा चीरा नहीं लगेगा। विशेषज्ञ डाक्टर पेट के रास्ते स्पाइन बोन को आसानी से सीधा कर सकेंगे। इस तकनीक से सर्जरी को अमेरिका की एडल्ट स्पाइन डिफॉरमेटी विद एंटीरियर लंबर इंटर बॉडी फ्यूजन (एएलआईएफ) कहते है।

Advertisement

डा. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान के न्यूरो सर्जरी विभाग में इस तकनीक से सर्जरी शुरू हो गयी है।
लोहिया के न्यूरो सर्जरी विभाग में इस तकनीक से सर्जरी में अब तक दो मरीजों में पेट के रास्ते स्पाइन बोन को सीधे करने में सफलता मिल चुकी है। विशेषज्ञ डॉक्टरों का दावा है कि सर्जरी पूरी तरह से सफल है। खास बात यह है कि मरीज सर्जरी के दूसरे दिन ही मूवमेंट करने लगा।

न्यूरो सर्जरी विभाग के डॉ. राकेश सिंह का कहना है कि स्पाइन बोन के टेढ़ेपन की परेशानी को क्लीनिकल में लिस्थेसिस विद स्पाइनल डिफॉरमेटी कहते हैं। उन्होंने बताया कि पहली महिला मरीज राजधानी की थी। 65 वर्षीय बुजुर्ग महिला की स्पाइन बोन टेढ़ी हो गयी थी। नौ वर्ष पहले एक बड़े चिकित्सा संस्थान में सर्जरी करायी थी, लेकिन कुछ ही वर्षो में सर्जरी फेल हो गयी। चार वर्ष से दर्द के कारण चलने फिरने की मोहताज हो गयी थी। दूसरो 54 मरीज गोरखपुर निवासी है। इसकी भी स्पाइन बोन टेढ़ी हो गयी थी। नयी तकनीक से दोनों की सफल सर्जरी है।

उन्होंने बताया कि इस बीमारी से पीड़ित मरीज शुरूआत में ध्यान नहीं देते हैं। 15 से 20 वर्ष के बाद बीमारी गंभीर रूप लेने लगती है आैर स्पाइन बोन टेढ़ी हो जाती है। मरीजों आगे की ओर झुकने लगता है। मरीज चलने-फिरने सहित दैनिक दिनचर्या के काम करने में परेशानी आती है। ऐसे मरीजों का इलाज का विकल्प सिर्फ विशेषज्ञों के द्वारा सर्जरी ही होती है। डॉ. राकेश का कहना है कि अभी तक सर्जरी में पीठ में ही लंबा चीरा लगाया जाता था। फिर हड्डी सीधा करने के लिए इम्प्लांट ट्रांसप्लांट किया जाता था। उन्होंने बताया कि अब इस नयी तकनीक में पेट में नाभि के निचले भाग में सात से दस सेंटीमीटर का चीरा लगाया जाता है। इसके बाद बीमार हड्डी तक पहुंचकर उसमें इप्लांट प्रत्यारोपित करते हैं। खासबात यह है कि ऑपरेशन के बाद मरीज अगले दिन चलने-फिरने लायक हो जाता है। संक्रमण की आशंका कम हो जाती है। ऑपरेशन की सफलता अधिक रहती है। डॉ. राकेश सिंह यूके से एएलआईएफ तकनीक से सर्जरी का प्रशिक्षण लिया। लगभग एक वर्ष के प्रशिक्षण के बाद उन्होंने संस्थान में सर्जरी शुरू कर दी है। सर्जरी टीम में यूरोलॉजी विभाग के डॉ. संजीत, डॉ. विपिन, डॉ. कृष्णा और एनस्थीसिया विशेषज्ञ डॉ. समीक्षा शामिल हैं।

Previous article…इस बार दोगुने से अधिक ब्लड डोनेशन
Next articleGood news: आउटसोर्सिंग कर्मियों का जल्द बढ़ सकता है वेतन

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here