लखनऊ । तबादला नीति को पूरी तरह से पारदर्शी व भ्रष्टाचार से दूर रखने की मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जो घोषणा की थी। वह वाणिज्य कर विभाग में तार- तार हो रही है। ज्वाइंट कमिश्नर व डिप्टी कमिश्नरों की अचानक जारी हुई लिस्ट को खुद विभाग के अधिकारियों ने ही विवादों के दायरे में कर दिया है। बताते चले कि कानपुर, वाराणसी व लखनऊ के अधिकारियों ने शासन के तबादले के फैसले को कोर्ट में चुनौती दी है। विभाग की तबादला नीति को लेकर प्रदेश भर में अधिकारी चर्चा करते हुए विश्लेषण कर रहे हैं। इसमें यह चर्चा ज्यादा है कि अधिकारियों के स्थानान्तरण में तबादला नीति का पालन ही नहीं किया गया है। बताया जाता है कि अभी तक जारी हुई अधिकारियों की तबादला सूची में किये गये प्रयोग को असिस्टेन्ट कमिश्नरों की सूची पर भी किये जाने की तैयारी है, शायद यही कारण है कि इस पद के अधिकारियों की सूची सोमवार को भी नहीं जारी की जा सकी।
दस सालों में यह पहला मौका है जबकि सूची को लेकर विभाग में इतना अधिक घमासान मचा की मामला कोर्ट तक पहुंच गया आैर सीएम के सबसे महत्वपूर्ण विभाग की चर्चाए अधिकारियों के कक्ष से निकलकर चाय व पान की दुकानों तक पहुंच गयी। विभाग के 70 फीसद अधिकारी चाहते हैं कि मुख्यमंत्री अपने स्तर से तबादला सूची की जांच कराए आैर इसकी हुई खामियों के लिए जिम्मेदारी तय करें, ताकि सरकार की स्वच्छ छवि की पारदर्शिता बनी रहे।
बताते चले कि विभाग की तबादला नीति 12 अप्रैल 2018 को जारी होते ही सवालों में आ गयी, क्योंकि इसमें 29/3/18 को जारी शासन की स्थानान्तरण नीति के प्रस्तर दो का हवाला देते हुए पूर्व में चेकपोस्टों पर तैनात रहे अधिकारियों का समय जिले व मण्डल की कार्यावधि में नहीं जोड़ने की बात कही गयी है, लेकिन मजेदार बात यह है कि शासन की जिस नीति का हवाला देते हुए ये बात कही गयी है, उसमें इस बात का कहीं उल्लेख नही है। इसके अलावा पूर्व में 24 मई 2016 को जारी तबादला नीति में सचल दल, विशेष जांच टीम ( एसआईबी) खण्ड व अन्य अनुभागों में तैनात अधिकारियों के लिए भी व्यवस्था दी गयी थी, लेकिन इस बार की नीति में केवल सचल दल व एसआईबी जैसे महत्वपूर्ण अनुभागों के अलावा अन्य किसी भी अनुभाग के लिए को नीति निर्धारण नहीं किया गया है।
हर बार स्थानान्तरण नीति में सत्र के आधार पर कार्यकाल की गणना की जाती थी, यानी नीति जारी होने पर अधिकारी की जहां तैनाती हुई थी, अगली तबादला सूची जारी होने पर एक सत्र माना जाता था, लेकिन इस बार की गणना 31 मार्च की तिथि मानकर की गयी है। 31 मई 2018 को 41 ज्वाइंट कमिश्नरों की सूची सार्वजनिक रूप से जारी की गयी। सूची के जारी होते ही विभाग के प्रदेश भर के कार्यालयों में हड़कम्प मच गया, क्योंकि तीन महत्वपूर्ण पर नए अधिकारियों की तैनाती कर दी गयी। इसमें कानपुर में विशेष जांच टीम ( एसआईबी) संभाग बी के पद पर तैनात ज्वाइंट कमिश्नर संगमलाल, ज्वाइंट कमिश्नर फिरोजाबाद के पद पर तैनात पर तैनात शिव प्रसाद व वाराणसी के ज्वाइंट कमिश्नर कारपोरेट के पद पर तैनात एसएसए जैदी अभी मात्र आठ माह पूर्व इन पदों तैनात हुए ही थे कि इनका स्थानान्तरण हुए बिना ही इन्ही पदों के लिए तीन अन्य अधिकारियों की तैनाती कर दी गयी।
पहले विभाग में अामतौर पर यह चर्चा थी कि सूची जारी करने के दौरान त्रुटि हो गयी है, जिसमें संशोधन कर दिया जाएगा। क्योंकि इतने बड़े पद पर तैनात अधिकारी का कार्यकाल पूरा हुए बिना दो ही दशाओं में ही स्थानान्तरण किया जा सकता है, या तो उसने स्वयं स्थानान्तरण मांगा हो, या फिर अधिकारी के खिलाफ कोई प्रशासनिक आधार हो। इन अधिकारियों के मामले में ऐसा कुछ भी नही था। जानकारी के अनुसार मुख्यालय प्रशासन इस त्रुटि को सुधार का पुन: शासन को भेजने का मन बना भी चुका था, लेकिन तभी अचानक कुछ ऐसा हुआ कि जिसे देखकर सभी हैरत में रह गए। मुख्यालय के पूर्व एडीशनल कमिश्नर आन्जनेय कुमार सिंह के हस्ताक्षर से 4 जून 2018 को एक आदेश पत्र जारी हुआ, जिसका हवाला देते हुए तीनों ज्वाइंट कमिश्नरों को कार्यमुक्त करते हुए मुख्यालय की प्रतीक्षा सूची में डाल दिया गया।
इसके बाद आन्जनेय कुमार सिंह का तबादला डीएम फतेहपुर के पद पर हो गया। तीनों अधिकारियों को कार्यमुक्त किये जाने के आदेश को देखकर जोनल एडीशनल कमिश्नर खुद हैरत में रह गये, क्योंकि अधिकारियों को लग रहा था, कि यह त्रुटि हुई है आैर जिन अधिकारियों को गलती से इस पद पर भेजा गया है उनको नवीन तैनाती दी जाएगी, लेकिन जब पूर्व से तैनात अधिकारियों को ही कार्य मुक्त किया गया तो इस बात पर मोहर लग गयी कि ये त्रुटि नहीं थी। इसके बाद कानपुर के ज्वाइंट कमिश्नर संगमलाल ने इलाहबाद हाई कोर्ट में इस फैसले को चुनौती दे दी आैर वाराणसी के श्री जैदी व फिरोजाबाद के शिव प्रसाद के वकीलों ने भी मोर्चा संभाल लिया, माना जा रहा है कि ये दोनों अधिकारी भी मंगलवार को कोर्ट में अर्जी दे देगें। इसी तरह 30 मई को जारी सीटीओ संवर्ग की सार्वजनिक सूची में त्रुटि होने का राष्ट्रीय सहारा में समाचार प्रकाशित होने के बाद विभाग को 17 संशोधन करने पड़े।
इसके बाद 17 जून को 283 डिप्टी कमिश्नरों की सूची जारी की गयी। इस बार सूची में कोई खामी न निकाली जा सके इसके लिए सूची को सार्वजनिक नहीं किया गया आैर अधिकारियों के तबादला आदेश उनके व्यक्तिगत मेल पर भेजे गए। इसमें कई अधिकारी ऐसे हैं जिनकी तैनाती अगस्त 2016 में की गयी थी आैर 31 मार्च 2018 को दो साल पूरा नहीं हुआ है इसके बाद भी उनको हटाया गया। लखनऊ के जोनल कार्यालय के खण्ड 12 में तैनात डिप्टी कमिश्नर हीरालाल को पद से हटा दिया तो उन्होंने इस फैसले को इलाहबाद की लखनऊ खण्ड-पीठ में चुनौती दे दी। इसी तरह कानपुर में एसआईबी के डिप्टी कमिश्नर सुरेन्द्र सिंह, विकास बहादुर चौधरी व धर्मेन्द्र को हटा दिया गया, जबकि इन्ही अधिकारियों के साथ ही आगरा एसआईबी की दो यूनिटों में वर्ष 2016 में आए एक भी अधिकारी को नहीं हटाया गया है।
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