लखनऊ – राजधानी में फेफड़े के मरीज बढ़ रहे है। इनका प्रमुख कारण धूम्रपान और कैंसर कारकों जैसे स्बेस्टस रेडॉन वायु प्रदूषण और डीजल के धुयें के संपर्क में आना है। फेफड़े के कैंसर के कारणों की जानकरी देते हुए डॉ. राम मनोहर लोहिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के असिस्टेंट प्रो.मेडिकल ऑन्कोलॉजी डॉ. गौरव गुप्ता ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों में भारत में फेफड़े के कैंसर के मामले बढ़े हैं, इनमें लखनऊ में भी संख्या बढी है। यहाँ पुरूषों की तुलना में महिलाएं अधिक पीड़ित हैं। आम तौर पर धूम्रपान और कैंसर कारकों जैसे स्बेस्टस रेडॉन वायु प्रदूषण और डीजल के धुयें के संपर्क में आने से भी फेफड़े का कैंसर होता है।
उन्होंने बताया कि वर्ष 2018 तक फेफड़े का कैंसर उन मृत्युओं का तीसरा सबसे बड़ा कारण है, जो कैंसर से होती हैं, देश में कैंसर से होने वाली कुल मृत्यु में यह लगभग 9 प्रतिशत है। विकासशील देशों में फेफड़े का कैंसर पुरूषों में सबसे आम रोग है और महिलाओं में तीसरा सबसे आम रोग है। फेफड़े के कैंसर का सही समय पर पता चलने के महत्व पर जोर देते हुए डॉ. गौरव गुप्ता ने कहा लखनऊ में 10 में से 9 मामले एडवांस्ड स्टेज में पता चलते हैं। इस अवस्था में उपचार केवल रोगी की क्वालिटी आफ लाइफ को बढ़ा सकता है, क्योंकि कैंसर मेटलाइज्ड होते हैं। फेफड़े के कैंसर की अनुशंसित जाँचों में सीटी स्कैन टिश्यू बायोप्सी और स्पटम साइटोलॉजी शामिल हैं। यदि शुरूआत में ही इस रोग का पता चल जाए, तो उपचार विकल्पों से रोग ठीक हो सकता है।
फेफड़े के कैंसर में असामान्य कोशिकाओं की अनियंत्रित वृद्धि होती है, जो एक या दोनों फेफड़ों में हो सकती है। फेफड़े के स्वस्थ ऊत्तक में असामान्य कोशिकाएं विकसित नहीं होती हैं वह इन तीन में से एक प्रकार का ट्यूमर स्मॉल सेल लंग कैंसर , नॉन स्मॉल सेल लंग कैंसर और लंग कार्सिनॉइड ट्यूमर बनाकर तेजी से विभाजित होती हैं। यह केवल मॉलीक्यूलर लेवल पर कैंसर के विकास में हस्तक्षेप करता है, ताकि कैंसर की वृद्धि और फैलाव रूके। यह कैंसर रोगियोंमें सुधार की दर दोनों के लिये बेहतर विकल्प है।
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