लखनऊ। वर्तमान में लिवर की बीमारी तेजी से बढ़ती जा रही है। बदलती जीवनशैली, दिनचर्या व खान-पान के अलावा लोगों में बढ़ता तनाव भी नॉन एल्कोहलिक फैटी लिवर डिसीजेज (एन.ए.एफ.एल.डी.) जैसी बीमारियां का कारण बन रहा हैं। यह जानकारी किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के गैस्ट्रोमेडिसिन विभाग के प्रमुख डा. सुमित रूगंटा ने पत्रकारवार्ता में दी। डा. रूगंटा के साथ डा. पुनीत मेहरोत्रा भी मौजूद थे।
डा. सुमित ने बताया कि दो दशक पहले इस तरह के लिवर की बीमारी उन्हीं मरीजों में देखी जाती थी जिनको या तो हेपेटाइटिस बी या सी होता था या फिर जिनको नशे की आदत होती थी। आज ऐसे मरीज बहुत पाये जाते हैं, जिन्होने नशीले पदार्थ का सेवन या तो बिल्कुल नहीं किया या अल्प मात्रा में किया।
डा. रूंगटा ने बताया कि पेट और लिवर रोग के मरीजों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। वहीं उनके मुकाबले डाक्टरों की संख्या काफी कम है। ऐसे में मरीजों को गुणवत्तापूर्ण इलाज की अपडेट जानकारी के लिए कार्यशाला का आयोजन 7 व 8 अक्टूबर को कराया जा रहा है। उन्होंने बताया कि लखनऊ में यू.पी. चैप्टर ऑफ इंडियन सोसाइटी ऑफ गैस्ट्रोइन्टरोलॉजी के तत्वाधान में होगी। जिसमें देश-प्रदेश के जाने माने लिवर डिजीज विशेषज्ञ हिस्सा लेंगे।
डा. पुनीत मेहरोत्रा ने कहा कि लिवर डिजीज में देखा गया है कि अगर आपका एसजीपीटी लगातार बढ़ा चल रहा है तो इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए। गैस्ट्रो एक्सपर्ट से सम्पर्क करना चाहिए। उन्होंने बताया कि पहली बार पीजी स्टूडेंट को इलाज के दौरान व्यवहारिक ता की जानकारी दी जाएगी।