लखनऊ। गर्भवती महिलाओं के लिए स्वाइन फ्लू हाई रिस्क फैक्टर की बीमारी है। गर्भवती महिला को हर स्थिति में सावधानी बरतनी होती है। अगर स्वाइन फ्लू के लक्षण दिखते है तो 48 घंटे के भीतर ही उसकी जांच करा कर विशेषज्ञ डाक्टर से इलाज कराना चाहिए। इस दौरान गर्भवती महिला को आइसोलेट कर दिया जाना चाहिए है। किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के माइक्रोबायोलॉजी विभाग की वरिष्ठ डाक्टर व वैज्ञानिक डा. शीतल वर्मा का कहना है कि स्वाइन फ्लू बीमारी सीधे तौर गर्भस्थ शिशु को दिक्कत नहीं करती है, परन्तु सावधानी व विशेषज्ञ की निगरानी में इलाज जरूर कराना चाहिए। उन्होंने बताया कि गर्भावस्था में शुरु के तीन चार महीने में अगर स्वाइन फ्लू के दौरान तेज बुखार व समय पर सही इलाज नही होता है, तो महिला को निमोनिया होने की आशंका ज्यादा होती है आैर गर्भपात होने की संभावना बढ़ जाती है।
इसके अलावा गर्भावस्था के अंतिम महीने में स्वाइन फ्लू होने पर सही इलाज न होने पर प्रीमेच्योर बेबी हो सकता है या कंजनाइटल डिजीज हो सकती है। उन्होंने बताया कि गर्भवती महिला के स्वाइन फ्लू की पुष्टि हो जाने के बाद उसे आइशोलेशन में रखना चाहिए आैर एन 95 मास्क का प्रयोग करना चाहिए। ताकि अन्य किसी के संक्रमण न फैले। विशेषज्ञ के परामर्श से एंटीवायरल दवा का सेवन करना चाहिए। उनका मानना है कि अगर गर्भवती महिला को स्वाइन फ्लू का संक्रमण ठीक हो रहा हो आैर उसी दौरान डिलीवरी भी हो जाए तो कोशिश करना चाहिए। शिशु को ब्रोस्टफीडिंग करा करके एक्सप्रेस ब्रोस्ट फीडिंग करानी चाहिए। इससे मां का दूध भी शिशु को मिलने से स्वस्थ्य रहेगा आैर संक्रमण भी नहीं होगा। उन्होंने बताया कि केजीएमयू के मिल्क बैंक में यह सुविधा मौजूद है।
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