लखनऊ। किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय प्रशासन मेडिकोज की रैगिंग की घटनाओं को लम्बी चौड़ी अधिकारियों की टीम होने के बाद भी रोक पाने में पूरी तरह से नाकाम साबित हो रहा है। घटनाओं को देखा जाए तो सीनियर मेडिकोज जूनियर की लगातार रैंिगग कर प्रताड़ित कर रहे हैं। आश्चर्य यह है कि अभिभावकों की शिकायत के बाद ही जांच का दावा, आरोपियों को निष्कासन व अर्थदंड के अलावा कोई कार्रवाई के अलावा रोकने के लिए कोई ठोस योजना नहीं बन रही है।
बताया जाता है कि अभिभावकों ने एक जुटता बनानी भी शुरू दी है आैर जल्द ही इसके लिए मुख्यमंत्री, शासन, चिकित्सा शिक्षा, यूजीसी व मेडिकल काउसिंग आफ इंडिया ( एमसीआई) में शिकायत करने की तैयारी शुरु कर दी है।
केजीएमयू में एमबीबीएस की 250 सीटों पर प्रवेश होने के बाद रैगिंग रोकने के लिए प्रथम वर्ष के छात्र-छात्राओं को अलग-अलग से हॉस्टल में रखा जाता है।
रैगिंग रोकने के लिए बाकायदा चीफ प्राक्टर के अलावा वार्डेन, सुरक्षा गार्ड के अलावा अन्य जिम्मेदार अधिकारियों की लम्बी चौड़ी फौज खड़ी कर दी जाती है। हेल्प लाइन नम्बर भी बना दिया जाता है, वहीं सीनियर मेडिकोज के आवागमन पर भी अंकुश रहता है।
सुरक्षाकर्मियों की निगरानी में छात्र हॉस्टल से क्लास तक जाते हैं। विभिन्न स्थानों पर सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। सुरक्षा के पुख्ता इंतजामों के दावों के बावजूद रैगिंग नहीं रूक रही है। रैगिंग रोकने के लिए केजीएमयू में प्रॉक्टोरियल बोर्ड में 30 से ज्यादा सदस्य हैं। इसमें ज्यादातर निष्क्रिय है। इसका खामियाजा मेडिकोज को भुगतना पड़ रहा है।
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